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________________ जीवन में संतोष केवल तब कीजिएगा जब आपके पास अमीरायत आ जाए। जब तक अमीरायत न आए तब तक संतोष नहीं। तब तक केवल पुरुषार्थ-हीपुरुषार्थ करते रहिएगा। जिंदगी में अंतिम श्वास तक पुरुषार्थ करते रहो। जिसके पास जीवन के सपने होंगे, ऊँचे लक्ष्य होंगे, वही ऊँचा पुरुषार्थ कर सकेगा। जीवन में जब तक पुरुषार्थ है तब तक अंतिम श्वास तक भी जीने का आनंद है। जीना एक स्वर्णिम अवसर है। इस अवसर को सार्थक करो। अब तक मरे नहीं हैं, केवल इसलिए जी रहे हैं, तो सचमुच केवल टाइम पास हो रहा है। एक 70 वर्ष के व्यक्ति के पास न जीने का मकसद है, न कोई लक्ष्य है, न कोई कार्य, बस जी रहा है। रोजाना रोटी खा लेता है, सो जाता है । दिन गुज़र रहे हैं, टाइम पास हो रहा है। विदेशों में लोग धर्म तो कम करते हैं, पर जीवन का सदुपयोग ज्यादा करते हैं। इसलिए वहाँ का 70 वर्ष का व्यक्ति भी प्रतिदिन कर्म करता है और जब तक कोई व्यक्ति कर्म नहीं करता तब तक वह रोटी भी नहीं खाता। मुफ़्त की रोटी मत खाओ, अपने घर के लिए कोई-न-कोई आहुति ज़रूर दो। अगर आप एक दादा हैं तो भी आहुति दो, बड़ी माँ हैं तो भी आहुति दो, एक बच्ची हैं तो भी आहुति दो। बच्ची घर में झाड़ लगा सकती है, दादाजी बाजार से घर में सब्जियाँ ला सकते हैं। पड़ दादाजी और कुछ नहीं कर सकते तो पोते को प्यार से खिला-पिलाकर अच्छे संस्कार तो दे सकते हैं । कुल मिलाकर आहुति होनी चाहिए। बिना आहुति के रोटी खाना अपने लिए अपराध या पाप समझो। माना हम संत बन गए और संत बनने के बाद मेहनत करना हमारे लिए ज़रूरी नहीं है, पर हम लोग 24 घंटे में से 12 घंटे प्रतिदिन मेहनत करते हैं। जब तक मेहनत नहीं कर लेते समाज की मुफ़्त की रोटी खाना अपने लिए पाप समझते हैं। संत बन गए तो इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम मुफ़्त की रोटी खाएँगे। किसी की दो रोटी तभी खाओ जब उसके बदले में तुम उसको बीस गुना लौटाने की ताक़त रखते हो। अगर ताक़त नहीं रखते तो कृपा करके किसी की भी मुफ़्त की रोटी मत खाओ, क्योंकि वह तो खिला-खिला कर तिर जाएगा, पर खा-खा कर तुम कहाँ डूबोगे? वह तो खिला-खिलाकर पुण्य अर्जित कर रहा है, सोचो मुफ़्त की खाकर तुम कहीं अपने पर कर्ज तो नहीं चढ़ा रहे ! इसलिए कहीं पर कोई जीमनवारी हो, स्वामी वात्सल्य हो, तो या तो मुफ्त की खाने मत जाना और अगर जाते हो तो पहले 101 की रसीद कटाना, फिर वहाँ पर भोजन करना। इस मुफ्त खाने की आदत ने हमारे हिन्दुस्तान को विकलांग कर दिया। धर्म तक को 36 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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