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________________ हमें साइकिल चलाना सीखना है तो दो-चार बार साइकिल से गिरना भी होगा। जिस आदमी ने सोचा कि साइकिल चलाना सीखूगा और घुटने छिल गए तो? जहाँ तक दो-चार बार घुटने नहीं छिले, वहाँ आज तक कोई आदमी साइकिल चलाना सीख ही नहीं पाया है। घुड़सवारी सीखने वाले को गिरना भी आना चाहिए। ___ माँ के पेट में कोई मज़बूत नहीं होता है। बच्चा तब मज़बूत होता है जब वह माँ की गोद से उतरकर ज़मीन पर चलता है और चलते-चलते कभी वह गिरता है, कभी लुढ़कता है, कभी माथे पर चोट लगती है। बच्चे का निर्माण ऐसे ही होता है। माँ की गोद में बच्चे बनते थोड़े ही हैं। ज्यादा प्यार से बच्चे केवल बिगड़ते हैं। प्यार करो पर ऐसे जैसे चिड़िया करती है। चिड़िया अंडों को सेती है, उनमें से बच्चे जब निकल आते हैं, उनके पंख निकल आते हैं, तो चिडिया पहला काम करती है अपने सिर का दबाव देकर बच्चे को घौंसले से नीच फेंक देती है। बच्चा नीचे लुढ़कता है। ऊपर से नीचे गिरने वाला बच्चा करेगा क्या? अपने आप उसके पंख खुल जाते हैं। एक बार पंख खुलना ज़रूर आना चाहिए। फिर तो जिंदगी भर खुद ही आसमान की ऊँचाइयों को छूते रहोगे। ___ एक माँ-बाप होने के नाते आप अपने बच्चों से ज़्यादा मोह मत करो, जिंदगी भर उनसे चिपके मत रहो। मोह में अंधे धृतराष्ट्र मत बनो। धक्का दो और उन्हें सबल बनाओ। सामान्यतया गॉड का अर्थ भगवान होता है लेकिन मैं गॉड का अर्थ दूंगा – 'गो ऑन ड्यूटी'IG = GO, O = ON, D = DUTY. अपने बच्चों को उनका कर्तव्य सिखाइए। उन्हें अपनी दुकान पर बाद में बिठाना, उससे पहले पाँच साल के लिए उसे मद्रास या बैंगलोर भेज देना और वह जो पाँच साल में धक्के खाकर छः हज़ार रुपया महीना कमाकर लाएगा तब कुछ दुनियादारी समझेगा। बाप की कमाई का मजा लेता है, दिन भर मोबाइल लगाता है, दिन भर मोटर साइकिल पर पेट्रोल पँकता है। छ: हज़ार रुपया महीना जब उसके हाथ में आयेगा तब उसको पता चलेगा कि महीना भर तक पसीना बहाना किसे कहते हैं और पसीने की कमाई किसे कहते हैं? पाँच साल बाद आप उसको अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दीजिएगा। पर पाँच साल बाद, पहले नहीं। पहले बच्चे को परिपक्व बनने दीजिए। परिपक्वता पैसे से नहीं आती। परिपक्वता परिश्रम से आती है, संघर्ष से आती है। तब वह दुकान आयेगा तो वह 18 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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