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पहनने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जो ना समझ होते हैं वे ज़्यादा सोने की चैनें पहना-पहना कर दिखाते हैं।
एक आदमी का दाँत सोने का था। मैंने उनसे पूछा, 'भाई साहब! टाइम कितना हुआ?' वो दाँत दिखाकर बोले 'साढ़े नौ।' मैंने कहा - भाई दाँत मत दिखाओ, दिखाना है तो अपना दिल दिखाओ ताकि पता चल सके कि अन्दर क्या है? सोने का दाँत दिखाने से क्या होगा? दिखाना है तो सोने जैसा दिल दिखाओ। इंसान की जुबान स्वर्णिम होनी चाहिए, दिल गोल्डन होना चाहिए।
इंसान की जिंदगी में तीन तरह के अमृत होने चाहिए। हाथ में रखिए दान का अमृत, दिल में रखिए दया का अमृत और जुबान पर रखिए मिठास का अमृत । ये तीन अमृत इंसान के पास होने चाहिए। जिसके पास ये तीन अमृत हैं, सचमुच वह अमृत पीकर अमर है। प्रश्न है मीठा बोलो, अच्छा बोलो, पर कैसे बोलो? क्यों मीठा बोलो? इसलिए मीठा बोलो क्योंकि पहली नियमावली यह सीख ली जानी चाहिए कि कुदरत कुछ नहीं करती, ईश्वर, नियति या भाग्य कुछ नहीं करते। वे तो केवल एक ही काम करते हैं कि जैसे तुम बीज बोते हो वैसा तुम्हें फल वापस लौटाते हैं। ईश्वर अन्य कुछ नहीं करते, वे केवल एक काम करते हैं कि जैसे बीज आप बोयेंगे उसके वैसे ही प्रतिफल वे लौटा देंगे। जैसा आप चाहें वैसा आप अपना उपयोग कर सकते हैं। अच्छे बीज बोओगे, अच्छी फसलें पाओगे। गाली के बदले में गाली लौटकर आएगी और गीत के बदले में गीत लौटकर आएँगे। किसी को सम्मान देंगे तो सम्मान लौटकर आएगा। पहला क़दम ही अगर अपमान का रख दिया तो पहला क़दम ही ग़लत पड़ गया। अपनी ओर से दूसरों को सम्मान देना, दूसरों की ओर से अपने लिए सम्मान पाने का रास्ता खोलना है। जैसा बोलोगे वैसा लौटकर आयेगा। आप बोलेंगे मम्मीजी, लौटकर आयेगा बहूरानी जी। आप बोलेंगे मम्मी वो बोलेगी बह। आप बोलेंगे - ये मेरी सास नहीं, माँ है, तो सास भी ऐसा ही कुछ बोलेगी - ये मेरी बहू नहीं, बेटी है। जैसा बोलेंगे वापस वैसी प्रतिक्रिया लौटकर आयेगी। आप बोलेंगे - बेटा आपने ये काम किया? ज़वाब आयेगा - हाँ मम्मीजी! मैंने ये काम कर दिया। आप बोलेंगे ए छोरा, सामने वाला बोलेगा - के है? अगला भी फिर पंजाबी या हरियाणवी अंदाज़ में ही बोलेगा।
ये दुनिया केवल लौटाती है। जैसा बोलेंगे वैसा लौटकर आयेगा। मेरी एक बहुत अच्छी मनोवैज्ञानिक कहानी है कि एक माँ ने अपने बेटे को, उससे ग़लती
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