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________________ गूंगे बनो। चौथा बंदर कहता है 'अज्ञानी बनो' । ज्यादा ज्ञानी बनोगे तो ऊखल में माथा डालते ही मूसल आ पड़ेगा। इसलिये मंत्र ले लो – 'मुझे नहीं मालूम' । पापा पूछेगे, 'फाइल कहाँ है?' मुझे नहीं मालूम और अगर आपने कह दिया पापा वहाँ है तो बोलेंगे – 'बेटा लाकर दे'। तो सबसे बढ़िया मंत्र है, मंत्रों का मंत्र है - 'मुझे नहीं मालूम'। ___ मैं आपको बताऊँ हमारे यहाँ कई तरह के माथापच्ची के काम होते होंगे, पर मुझ पर कोई दायित्व नहीं है, कोई जवाबदारी नहीं है। क्यों नहीं है? कोई आता है, साहब! ये काम है। मैं कहता हूँ 'मुझे नहीं मालूम'। सीधा-सादा, सौ झंझटों से बचाये रखने का मैंने जो मंत्र अपना रखा है, वह है - मुझे नहीं मालूम। आप चाहें तो आप भी अपना सकते हैं । मैंने तो अपना रखा है। मैं कहता हूँ- 'भाई, मुझे नहीं मालूम, उनसे पूछो। बस, इतना कहते ही बला टली। नहीं तो माथा फोड़ी तुम्हें करनी पड़ेगी सो पहले में ही पतंग काट दो, भई मुझे नहीं मालूम, ऊपर जाओ, उधर जाओ। सबको आगे की तरफ भेजते रहो।' एक घर में पाँच लोग सोए हुये थे। किसी ने दरवाजा खटखटाया, एक ने सुना, पर वह सिर ढंक कर सो गया। दूसरे ने भी इधर-उधर देखा। अरे यार, कोई देख ही नहीं रहा है तो वह भी माथा ढककर के सो गया। तीसरे ने भी गौर नहीं किया। चौथे ने कहा – 'कौन है?' बोले – 'मैं हूँ, दरवाजा खोलो।' उसने पाँचवें से कहा – 'भैया ये हैं, दरवाजा खोलूँ?' बोले - 'जो बोले सो कुंडा खोले।' जैसे ही गये बीच में बोलने के लिये कि उसका सरदर्द आके सिर आ गया। सावधान! सामने वाला मूसल लिये तैयार है। कभी भी ऊखल में माथा आ सकता है। इसलिए मुक्त रहने के लिए अज्ञानी बनो। संकट की घड़ी में ये चारों बातें बड़ी उपयोगी हैं। सो ज़्यादा हस्तक्षेप मत करो। ज़्यादा मगज़मारी मत करो। होने दो, जो होता है उसको होने दो। कोई फटी जींस पहनता है तो पहनने दो, कोई बरमूडे में घूमता है तो घूमने दो। अपना क्या जाता है। टाँगे उसकी दिखती हैं, मर्यादाएँ उसकी भंग होती हैं। 'तू तेरी संभाल'। तुम तो तुम्हारी सोचो। तू मेरी संभाल, छोड़ शेष जंजाल । सरपच्ची में हाथ मत डालो। एक ही मंत्र याद रखो – 'तू तेरी संभाल'। चन्द्रप्रभ के चार बंदर जीवन की यही बुनियादी नसीहत हम सब लोगों को दे रहे हैं । नसीहत हमें पहले दौर पर सिखा देती है कि आज के बाद मुझे सकारात्मक 82 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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