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________________ पाँचवीं बात है : बोलते समय कभी किसी की खिल्ली न उड़ाएँ । कभी किसी की निंदा न करें, आलोचना न करें। क्योंकि आज आप उसका उपहास करेंगे, कल वह आपका उपहास करेगा। आज हम किसी की मज़ाक उड़ायेंगे, कल वह हमारी मज़ाक उड़ायेगा । इसीलिए कहता हूँ, कभी किसी की खिल्ली न उड़ाएँ। निंदा न करें। निंदा करने वाले भाई-बहिन अपनी जीभ पर नियंत्रण लायें । निंदा करने से अगले का पाप तो धुल जाएगा पर वह पाप हमारे मत्थे चढ़ जाएगा । भाई-बहिनो ! चतुर्दशी का उपवास करना या मत करना, एकादशी का व्रत करना या मत करना, पर जिस दिन हमारे मुँह से किसी की निंदा या आलोचना हो जाए तो उस दिन उस निंदा के प्रायश्चित के लिए व्रत ज़रूर कर लीजिएगा । इसलिए कभी भी किसी की भूल - भूलकर खिल्ली न उड़ाएँ। जो व्यक्ति जीवन में किसी की निंदा करने का पाप नहीं करता, उस व्यक्ति का अपने केवल इस एक पुण्य के बल पर देवलोक का सौधर्म इन्द्र बनना तय है । हो सकता है आपके जीवन में बहुत सारी विशेषताएँ हों, लेकिन कमी यह है कि हम लोग पीठ पीछे एक-दूसरे की टीका - टिप्पणी करते रहते हैं, एक-दूसरे की टाँग खिंचाई करते रहते हैं। आगे तो ख़ुद बढ़ते नहीं हैं और जो आगे बढ़ता है उसकी टाँग पीछे खींच लिया करते हैं। टाँग खिंचाई पाप है। कृपया केकड़े न बनें कि जो दूसरा आगे चल रहा है उसकी टाँग खींच कर पीछे ले आए। मछली बनें, जो कोई दूसरा आगे बढ़ रहा है, उसके आगे कूदकर आगे बढ़ जाएँ । हमें आगे बढ़ने का अधिकार है, पर किसी की टाँग खिंचाई करने का अधिकार नहीं है । कल की घटना है : दो-तीन व्यक्ति हमारे पास बैठे हुए थे । एक व्यक्ति ने कहा - साहब ! पिछली दफ़ा एक गुरुजी आए थे। समाज में उनके प्रवचन के बाद जीमण रखा गया था । पाँच सौ लोगों का भोजन बनाया गया था, पर क्या करें, हज़ार लोग जीम कर चले गये । बगल में बैठा था दूसरा आदमी । उसने कहा, खाना ही ऐसा बना था कि पन्द्रह सौ जीम जाते तो भी बचा हुआ रहता । यह है अपन लोगों की प्रवृत्ति । कृपया छिलके मत उतारो। प्रशंसा होती है तो कर लो, अन्यथा सबसे मीठी चुप । आदमी को केवल बोलना ही नहीं, बल्कि मौन रहना भी आना चाहिए। बोलना अगर चाँदी है, तो मौन रहना सोना है । बोलने की कला का छठा स्टेप : कभी किसी के लिए गाली-गलौच न करें। साला कहना है तो घरवाली के भाई को साला कहें। हर किसी को स्साला Jain Education International For Personal & Private Use Only 111 www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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