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पढ़ाई के पैसे माँ-बाप से न माँगे । एल.के.जी., यू.के.जी, पहली, दूसरी क्लास के बच्चों की टीचिंग करो, उन्हें पढ़ाओ और उसके द्वारा आपको प्रति माह जो दो हज़ार रुपये प्राप्त हुए, उसमें से एक हज़ार रुपया ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई के लिए काम आ गए। अगर दसवीं पास होने के बाद बच्चा माँ-बाप से पैसे लेकर आगे की पढ़ाई करता है तो इसका मतलब यह हुआ कि बच्चा अपने माँबाप पर बोझ बन रहा है । उसको अपने पाँव पर खड़ा होना आना चाहिए। केवल अपने बच्चों को पढ़ाते ही मत रहो, बल्कि अगर आप रोकड़ बही जानते हैं तो दसवीं करते ही अपने बच्चे को रोकड़ बही लिखना भी सिखा दो । अगर आपकी बच्ची पन्द्रह-सोलह साल की हो गई तो केवल बी. ए. की क्लास ज्वॉइन मत कराओ, उसे खाना बनाना भी सिखा दो । हुनर आना चाहिए। न मेरी ज़िंदगी का कोई भरोसा है और न आपकी जिंदगी का कोई भरोसा है। एक माँ-बाप को जीते-जी अपने बच्चे को पाँवों पर खड़ा होना सिखा देना चाहिए। ज़रूरी नहीं है कि आप आज की तरह कल भी करोड़पति रहें ही । यह तो चक्का है और चक्का घूमता है तो ऊपर वाला कभी नीचे आ जाता है और कभी नीचे वाला ऊपर आ जाता है। इसलिए एक बात हमेशा याद रखना । आपके घर में अगर कोई लड़की है तो उस लड़की के लिए शादी की चिंता बाद में कीजिएगा पहले उसे पढ़ा-लिखा कर नौकरी लगाना शुरू कर दीजिएगा ताकि उसका स्वाभिमान जग सके। उसे अहसास हो कि मैं एक लड़की हो गई तो क्या हुआ, अपने पाँवों पर खड़ी हो सकती हूँ, मैं भी कमा सकती हूँ ।
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बहनो और बिटियाओ, अपने दहेज की व्यवस्था अपने माँ-बाप से मत करवाना, पढ़ाई की व्यवस्था भले ही उनसे करवा लेना, पर अपने दहेज की व्यवस्था खुद अपने बलबूते पर करना । अब वे जमाने लद गए कि जब कहा जाता था कि लड़कियाँ कमाने थोड़े ही जाती हैं । आप लोग बहुत सालों तक दबदब कर रही हैं। अगर आप नहीं कमायेंगे, अगर आप मेहनत नहीं करेंगे तो हर पन्द्रह दिन में हाथ का कटोरा आगे बढ़ाना पड़ेगा और वह जितना दे दे उतने में राजी होना पड़ेगा । आपकी कोई इच्छा होगी तो आप ज़रूरी नहीं है कि उसे पूरा कर भी पायें । हिम्मत तो बटोरनी पड़ेगी । जब भी कोई व्यक्ति हिम्मत बटोरता है, काम बन जाता है। अगर किसी आदमी को फुटबॉल खेलना नहीं आता तो तभी तक नहीं आता है जब तक कि मैदान नहीं मिलता, लेकिन जैसे ही सामने खेलने के लिए मैदान और गेंद मिल जाती है तो अपने आप किक मारना और गोल करना
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