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________________ अंगुली लगाए है जो कहता है - बुरा मत सोचो। गाँधी के तीन बंदर कहते हैं – बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो। पर चन्द्रप्रभ का चौथा बंदर दिमाग पर अपनी अंगुली रखकर बोलता है, बुरा मत सोचो। अगर चन्द्रप्रभ का चौथा बंदर लागू किया जाता है तो गाँधीजी के तीनों बंदर सार्थक होंगे। अगर चौथा बंदर नहीं है तो तीनों के तीनों बंदर. बंदर ही रहेंगे। पैदाइश भी बंदर की, आदि रूप भी बंदर का, आज भी बंदर ही हैं। इसीलिए आज चन्द्रप्रभ के चार बंदरों की ज़रूरत है। चौथा बंदर हमें सिखाता है कि बुरा मत सोचो। अगर आप बुरा नहीं सोचेंगे तो बुरा सुनेंगे भी नहीं, बुरा बोलेंगे भी नहीं, बुरा देखेंगे भी नहीं। अब गाँधीजी के तीन बंदर नहीं, चन्द्रप्रभ के चार बंदरों की चर्चा करो। आज हम शुरुआत ही यहीं से कर रहे हैं कि बुरा मत सोचो। क्यों न सोचें बुरा? इसलिए मत सोचो, क्योंकि हमारे शब्द ही हमारा व्यवहार बनते हैं। अपने व्यवहार के प्रति जागरूक रहो क्योंकि हमारा व्यवहार ही हमारी आदत बनता है। अपनी आदतों के प्रति जागरूक बनो, क्योंकि हमारी आदतों से ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है। चरित्र को ठीक करना है तो व्यवहार को, आदतों को ठीक करना होगा और शब्दों को ठीक करने के लिए हमें अपनी सोच को, अपने दिमाग को ठीक करना पड़ेगा। ___ भेजा, भगवान ने भेजा है। भेजे को ठीक से उपयोग करो। अगर भेजा नहीं है, तो मुझसे कहो, मैं थोड़ा-सा भेजा भेज दूं। मैं आपके भेजे को ही ठीक कर रहा हूँ। चन्द्रप्रभ के चार बंदर भेजे को ही ठीक करने के लिए हैं। ये बंदर इतना ही नहीं कहते कि बुरा मत सोचो, बल्कि ये यह भी कहते हैं कि सोचो, अच्छा सोचो। चलो, मैं इन बंदरों को और नये अर्थ दे देता हूँ। पहला है – 'बुरा मत सुनो'। मैं आपको इसका दूसरा अर्थ दे देता हूँ। यह कान पर अंगुली है। जिसका मतलब है 'बहरे बनो'। मुँह के ऊपर हाथ रखा हुआ है, 'गूंगे बनो' । आँख के ऊपर हाथ रखा हुआ है, जिसकी प्रेरणा है, अंधे बनो' । जब-जब भी कोई हमें हतोत्साहित करे, जब-जब भी कोई हमें, निंदा-आलोचना की बात सुनाये, हमें हल्की बात कहने लगे तब-तब बहरे बनो। जब-जब भी किसी दृश्य को देखकर हमारी आँखें विचलित हो जाती हैं, हमारा मन भटक जाता है, तब-तब 'अंधे बनो'। जब-जब भी हमारे शब्द किसी के लिए आग में घी डालने का काम करते हैं तबतब 'गूंगे बनो।' | 79 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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