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में से एक बच्चा इंजीनियरिंग की उच्च स्तर की पढ़ाई करने में सफल हुआ। मात्र छह-सात महीने में स्थिति यह बनी कि उसके पास बारह से तेरह लड़के पढ़ने लग गए। डेढ़-दो साल में लगभग 350 विद्यार्थी पढ़ने आने लगे । आज उस इंजीनियरिंग टीचर के पास पूरे 35000 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं ।
उस जुझारू व्यक्तित्व का नाम है वी. के. बंसल । उस व्यक्ति ने कोटा में बंसल इंस्टीट्यूट बनाया और कोई भी व्यक्ति अगर बंसल इंस्टीट्यूट में पढ़कर निकलता है तो उसको सीधा 40 से 50 लाख का पैकेज मिलता है, क्योंकि वहाँ से पढ़ा हुआ इंसान केवल पढ़ाई करके नहीं आता, एक गुरु के कठोर अनुशासन में से निकलकर अपने जीवन का निर्माण करके आता है ।
कौन कहता है आसमान में छेद हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ।
माना कि आसमान बहुत बड़ा है, बहुत ऊँचा है, लेकिन यह तभी तक ऊँचा और विशाल है जब तक व्यक्ति पूरे मन से और तबियत से पत्थर न उछाले । जैसे ही कोई इंसान अपने भीतर किसी बी. के. बंसल की तरह अपने ज़ज़्बे को, , अपने जुनून को जगा लेता है वह भले ही शरीर से अपाहिज क्यों न हो लेकिन धरती में कुआँ खोद सकता है, समुद्र में से तेल निकाल सकता है, अंतरिक्ष में पहुँचकर नये चन्द्रलोक की अभिनव यात्रा संपन्न कर सकता है। आखिर जिसने अपने आपको केवल एक लड़की मानकर सिमटा नहीं लिया, जिसके भीतर एक ज़ज़्बा और जुनून जग गया तो वही लड़की कल्पना चावला बनकर चन्द्रलोक पहुँचने में सफल हो गई ।
माना कि राजस्थान में केवल रेगिस्तान ही है और जहाँ बालू के अलावा पानी के दर्शन भी नहीं होते, पर अगर कोई व्यक्ति अपने भीतर ज़मीन में से भी कुछ निकालने का जज्बा जगा ले तो बाड़मेर और जैसलमेर जैसे इलाके में जहाँ पर पानी भी कठिनाई से निकलता है, वहाँ भी पेट्रोलियम के कुएँ खोजे जा सकते हैं । इंसान के भीतर चाहिए केवल उसका एक ज़ज़्बा, एक जुनून | ज़िद करो, दुनिया बदलो । किसी भी विद्यालय या महाविद्यालय में कई छात्र एक साथ पढ़ने के लिए जाते हैं, एक ही क्लास में 60 विद्यार्थी एक साथ पढ़ते हैं। 58 बच्चे पीछे रह जाते हैं और 2 बच्चे आगे निकल जाते हैं। एक बच्चा उनमें से टॉप टेन में आने में सफल होता है। आखिर वज़ह क्या है? वज़ह केवल एक ही है कि छात्र ने पहले
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