Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 123
________________ सीधा गिरा और पूरी सेना में जोश जग गया कि देवी भी हमारे साथ है, सारे देवता भी हमारे साथ हैं। सभी युद्ध के मैदान में पहुँच गए, सामने इतनी भयंकर सेना को देखा, एक बार तो काँप गए। संत को भी लगा कि शायद कुछ गड़बड़ हो रहा है। उसने कहा - ठहरो, एक बार फिर सिक्का उछालकर देख लेते हैं ताकि मन की शंका निकल जाए और उसने युद्ध के मैदान में फिर सिक्का उछाला। सिक्का फिर सीधा गिरा। जैसे ही सैनिकों ने देखा कि अब भी देवी माँ का आशीर्वाद हमारे साथ है, सेना में चार गुनी ताक़त आ गई और भिड़ पड़े। लोग समझते थे महीनों युद्ध चलेगा पर सूर्यास्त नहीं हुआ। उसके पहले जीतकर लौट आए। ___ संत की जय-जयकार होने लगी। संत वापस आया और राजा का अभिवादन किया। राजा ने कहा- सब देवी माँ की कृपा है। संत ने कहा- राजन! यह देवी माँ की कृपा से ज्यादा सैनिकों के भीतर आत्म-विश्वास और जोश की परिणति है। राजा बोले - तुम कहना क्या चाहते हो? उसने जेब में हाथ डाला, सिक्का निकाला, फिर उछाला, सिक्का सीधा आकर गिरा।संत ने राजा से कहा - राजन् ! सिक्का लो हाथ में और उछालो। राजा ने भी उछाला। सिक्का सीधा गिरा। उसने जब सैनिकों को सिक्का दिया और कहा कि सारे लोग मिलकर उछालो । सबने मिलकर सिक्का उछाला। सिक्का सीधा गिरा। सब लोग भौंचक्के रह गए। संत ने रहस्य खोला। कहा - सिक्के को जब भी गिराओगे यह सीधा ही गिरेगा क्योंकि इसमें उल्टे वाला भाग है ही नहीं। इधर भी सीधा है और उधर भी सीधा है, इधर भी भारत है और उधर भी भारत ही है,अब तुम उल्टा लाओगे कहाँ से? सफलता का एक ही राज़ है: अपना सिक्का हमेशा सीधा रखो। मुझे तो कोई अगर सम्मान देने आ जाए, पाँव में चंदन की पूजा करने आ जाए तो भी साधुवादसाधुवाद और अगर कोई जूतों की माला पहनाने आ जाए तो भी साधुवाद... साधुवाद। मुझे ऐसा लगेगा कि तुम मुझे अपने पाँव में झुकने नहीं देते, पर बीस जूते एक साथ लेकर आये तो माथे को तुम्हारे जूतों को लगाने का सौभाग्य मिल गया। ऐसे में आप मुझे प्रणाम करने देते नहीं हैं, कहते हैं - आप संत हैं, आप गरुजी हैं, आप हमें कैसे प्रणाम कर सकते हैं। अपना सिक्का तो हमेशा सीधा ही गिरेगा। चित गिरे कि पुट अपना सिक्का तो सीधा ही दिखाई देगा। क्या करें कि जग जाए आत्म-विश्वास, कि सिक्का उछालने की नौबत ही न आए। जो डरपोक होते हैं वे चोर को देखकर डर जाते हैं, चोर की तो छोड़ो चूहे 124 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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