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मैं एक स्कूल के पास से गुजर रहा था, भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय ने उस स्कूल का निर्माण करवाया था। हमारे स्कूलों में जिंदगी के पाठ नहीं पढ़ाये जाते। तैमूरलंग, चंगेजखाँ जैसे आतताइयों के पाठ पढ़ाये जाते हैं सो बच्चों ने क्या किया? किसी बच्चे को खरापात सझी होगी और उसने मंत्रालय पर जो बिंदु था उसको मिटा दिया, म के नीचे उ की मात्रा कर दी।
अब बताओ तो क्या बन गया? (दबी ज़बान से लोगों ने कहा-) मूत्रालय। निठल्ले लोगों की ऐसी होती हैं करतूतें । वे कोई काम के नहीं होते। घर में भी अगर आपका बेटा, पोता निठल्ला रहता हो तो बोलो उसे कि घर से बाहर जा, कुछ भी काम कर लेकिन घर में फालतू मत बैठा रह। तू यहाँ बैठा रहेगा तो कुछ भी उल्टा-सीधा करता रहेगा। घर से निकाल दो, दस दिन धक्के खायेगा तब अपने आप कमाना सीख जायेगा। महिला ने पति से कह दिया कि घर से बाहर निकलो कुछ भी कमा कर लाओ। खाली हाथ मत आना, कुछ भी लेकर आना, भले ही पत्थर का टुकड़ा लेकर आना पर लेकर आना।
इस तरह वह पति निकल गया। साँझ को लौटने लगा दिन भर इधर-उधर भटककर । कमाना-धमाना जानता था नहीं। रोजाना यजमानों के यहाँ चला जाता था।आटा माँगकर ले आता और बस टिक्कड़ जीम लेता। वह साँझ को घर लौटने लगा। उसे काम-धाम तो कुछ मिला नहीं, पत्नी ने कहा था कि खाली हाथ लौटकर मत आना। अब क्या ले जाऊँ घर पर, क्या ले जाऊँ, इसी उधेड़बुन में था कि इतने में देखा कि घर से सौ मीटर की दूरी पर एक साँप मरा हुआ पड़ा था। उसने सोचा यह ठीक है यही ले जाता हूँ। अगले दिन से घरवाली मुझे बाहर भेजेगी ही नहीं। एक ही दिन में ठंडी पड़ जाएगी।
सो उसने एक सूखी लकड़ी उठाई और उस मरे हुए साँप को ले आया। आकर घरवाली से कहा - ये लेकर आया हूँ। घरवाली ने कहा - कोई बात नहीं, कुछ-न-कुछ तो लाये हो। घर पर दिन भर निठल्ले बैठने की बजाय कुछ-न-कुछ तो लाये हो भले ही मरा हुआ साँप ही सही। उसने वह लकड़ी ली
और अपनी झोंपड़ी के ऊपर उस मरे हुए साँप को फेंक दिया। तुम मेहनत करके लाये हो और मेहनत की कमाई का क्या फल होता है यह तो ऊपर वाला दाता जाने कि मेहनत करने वाले को दाता क्या फल देता है? वह अपना खानापीना करने लग गया।
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