Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 105
________________ हा हो और साली को आप कहते हो यह बड़ी ग़ज़ब की व्यवस्था है। शायद आप साली को इसलिए आप कहते होंगे कि कभी घरवाली ऊपर चली जाए तो....। लोग कहते हैं - साली आधी घरवाली होती है। पता नहीं, यह संस्कार आप लोगों ने कहाँ से, किस संस्कृति से प्राप्त किया है कि हम अपनी धर्मपत्नी को तू या तुम कहते हैं। कुत्ते को भी तू कहो तो वो भी आपको इज्जत नहीं देगा। उसे भी प्यार से पुचकारना पड़ता है। ___ बोलने की कला का पहला मंत्र है : जब भी बोलो अदब से बोलो । पत्नी को भी आप कहो। हो सकता है कि आप लोग अब तक तुम कहते रहे हों। जो कहा सो कहा, अब भी ठीक कर लें। अपनी कुलीनता की इबारत लिख लें। आखिर ख़ुद को ठीक कब करेंगे? कोई मुहूर्त निकालकर ठीक करेंगे या जागें तभी सवेरा। तीन दिन थोड़ी असुविधा होगी पत्नी के सामने आप कहते हुए, क्योंकि बरसों पुरानी आदत है तू-तू करने की सो तीन दिन थोड़ा सा अजीब लगेगा लेकिन अगर हम यही संकोच करते रहे तो हम जिंदगी भर अपनी पत्नी को आप कहने का सम्मान नहीं दे पाएँगे। हर पति अपनी पत्नी को आप कहे, यह रेस्पेक्ट है। मैं अपनी ओर से यह पाठ सिखाना चाहूँगा कि रेस्पेक्ट की शुरुआत माँ-बाप से बाद में कीजिए, पत्नी से पहले शुरू कीजिए, क्योंकि वहीं पर आकर आप कमज़ोर पड जाते हैं। सबको हम आप कह देंगे लेकिन पत्नी को आप कहने में हिचकेंगे। आपकी पत्नी आपके घर की लक्ष्मी है और घर की लक्ष्मी को हमें सम्मान देना आना चाहिए। घर की लक्ष्मी को तुम कहकर अपमान न करें। जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ कुल देवता स्वतः रमण करते हैं। हो सकता है 'वो' आपकी पत्नी हो, पर आपके घर की गृहलक्ष्मी भी है और गृहलक्ष्मी को हमेशा सम्मान देना चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति सिखाती है : यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवताः। जहाँ पर नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी रमण करते हैं। ___ मैं पूजा की बात फिलहाल नहीं कहूँगा, पर तुम से आप कहने की आदत आज से ही शुरू कर देंगे तो समझ लूँगा आपने नारी की पूजा कर ली, लक्ष्मी जी के कृपापात्र बन गए । सम्मान के बदले सम्मान लौटकर आता है और अपमान के बदले में अपमान लौटकर आता है। केवल खुद ही आगे मत आते रहिए। अरे आप तो आगे हैं ही, पिछड़ों को भी आगे लेकर आइए। इसी में ही आपके बड़े 106 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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