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कड़क हुआ करते हैं और जीभ अभी तक इसलिए है क्योंकि जीभ हमेशा नरम रहा करती है। गुरु ने कहा - बस, मैं समाधि लेने से पहले जिंदगी का अंतिम पैग़ाम यही देकर जा रहा हूँ कि पूरी दुनिया में मेरी यह बात फैला दी जाए कि जो आदमी कड़क भाषा बोलता है, वो दाँतों की तरह होता है, वो जल्दी गिर जाता है, पर जो जीभ की तरह नरम भाषा का इस्तेमाल करता है लोग उसका अंतिम श्वास तक साथ निभाया करते हैं। ___ इस मीठी और प्यारी कहानी का सार इतना-सा है कि हम अपनी भाषा की कड़कई छोड़ें और जीभ की तरह सरल, विनम्र और मधुर भाषा का उपयोग करें। मधुर भाषा यानी व्यक्ति-व्यक्ति के बीच बनाया जाने वाला सुन्दर और मधुर सेतु। मधुर भाषा यानी हर शब्द-शब्द में फूलों का गुलदस्ता। मधुर भाषा यानी केशरचन्दन-केवड़े का शर्बत। शांत-विनम्र-मधुर भाषा यानी जीवन के समस्त सकारात्मक भावों का जीने का आधार । सचमुच, यह एक ऐसा झरना है जिसमें संसार के सारे सुख समाये हैं।
यदि कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी में बोलने की कला सीख ले, अगर उसे बोलने की कला आ जाए तो जीवन की 78% समस्याएँ तो खुद-ब-खुद हल हो जाएँ। इंसान की जिंदगी में लोकप्रियता पाने का, रिश्तों को बनाने का, समाज के नव-निर्माण का अगर कोई आधार है तो वो इंसान की जबान ही है। जब तक इंसान को बोलने की कला न आए तब तक इंसान दुनिया में स्थापित नहीं हो सकता। तैरने की कला सीख कर वह डूबता हुआ तो बच सकता है, खाना बनाना सीख कर भूखे मरने से बच सकता है, पर बोलने की कला सीख कर पूरी दुनिया में दम खम के साथ स्थापित हो सकता है। कुल मिलाकर आदमी यह तो देखता है कि मेरे दाँत गिरते चले जा रहे हैं, पर कोई आदमी इस बात पर गौर नहीं करता कि आखिर मेरे दाँत क्यों गिरते जा रहे हैं। जीभ मेरे दादा के अंतिम साँस तक काम आई थी, मेरे पिता के भी अंतिम साँस तक काम आई और मेरे भी काम आ रही है, अंतिम श्वास तक जीभ साथ देती है। जीभ इसलिए साथ देती है क्योंकि वो नरम है और दाँत इसलिए गिर जाते हैं क्योंकि वे कड़क हैं । मुँह में बत्तीस दाँत दिखाई देते हैं, पूरी बत्तीसी। ये बत्तीस दाँत ऐसे लगते हैं जैसे कि हमारे मुँह के इर्द-गिर्द हिफ़ाज़त के लिए पूरी सेना खड़ी हो । जीभ सेनापति की तरह है। जीभ अगर ठीक से इस्तेमाल करते रहे तो बत्तीसी आपकी सुरक्षित रहेगी, पर अगर जीभ का
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