Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 84
________________ रखे डस्टबिन में अपने-आप को खाली कर लीजिएगा। ज़रा बताओ कि आपकी जेब में कुछ कचरा-पचरा पड़ा है, कुछ खाली पाउच पड़े हैं तो आप उन्हें जेब में सहेज-सहेज कर रखेंगे या बाहर फेंक देंगे? बाहर फेंक देंगे। तो, साँझ को घर जाओ तो सीधा घर घुसने की बजाय एक मिनट के लिए सीढ़ी पर खड़े हो जाओ और जेब में कोई फालतू काग़ज हो तो निकाल कर डस्टबिन में फेंको। घर में कहाँ लेकर जायेंगे। पाउच हो, रद्दी काग़ज हो, कचरा हो इधर-उधर का, वो बाहर निकाल फेंको। इतना ही नहीं, कचरे के साथ-साथ दिमाग़ में भी जो दिन भर की दुकानदारी में थोड़ी-बहुत ख़ीज, थोड़ा बहुत गुस्सा, क्रोध, थोड़ी-बहुत टेंशन, थोड़ी-बहुत चिंता भरी पड़ी हैं, इन्हें दिमाग़ में से निकाल कर बाहर फेंद दो। खाली हो जाओ। सबसे पहले तो अपना दिमाग़ ठीक कर लो, ताकि मैं जो मंत्र बताऊँगा वह आपके लिए उपयोगी बन सके। पहला मंत्र है : अपनी सोच को सकारात्मक और बेहतर बनाने के लिए, सृजनात्मक और रचनात्मक बनाने के लिए - सबसे पहले अपने मिज़ाज़ को अपने दिमाग़ को ठंडा रखो। लोगों के जीवन में धर्म -आराधनाएँ तो खूब होती हैं पर साल में एक दिन भी मिजाज़ ठंडा नहीं होता। पर्युषण में लोग कहते हैं 'यह आत्म-शुद्धि का पर्व है'। पर जिनका मिजाज़ ही गर्म है वह पर्युषण पर्व में मंदिर और स्थानक में चले भी जायेंगे तो वहाँ जाकर भी वही हो-हल्ला, हुल्लडबाजी करेंगे, कर्म काटेंगे तो नहीं उल्टा बाँधकर वहाँ से आ जाएँगे। अरे, अपने जीवन भर के कर्म काटने के लिए हम मंदिर, स्थानक और गुरुजनों के यहाँ जाते हैं, पर वहाँ जाकर जो कर्म बाँध कर आ जाते हैं, सोचो, वे लोग अपने कर्मों को काटने के लिए कहाँ जाएँगे? सच्चा धर्म है : मिलाज़ को शांत-शीतल करो। लोगों ने अपने घरों में एयरकंडीशनर लगा लिया है, लोग अपने घरों को तो ए.सी. बनाते जा रहे हैं, पर अपने दिमाग को? दिमाग को हीटर बनाते जा रहे हैं। क्या ग़ज़ब है घर ठंडा, दिमाग़ गर्म! दिमाग़ ठंडा करने में तो ए.सी. नाकारे साबित हो रहे हैं। ___ मैं आप में से ही एक महिला का जिक्र करूँगा, जिनका नाम है चन्द्रप्रभा जी चोरड़िया। उनके मकान में पंखा या ए.सी. नहीं चलता, लेकिन मैंने उस सम्पन्न महिला को कभी गुस्से में नहीं देखा। जब भी उस महिला को बात करते हुए पाया, हमेशा गुलाब के फूल की तरह महकती, चिड़िया की तरह चहकती और इन्द्र 85 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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