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किया भागवान जो गन्ने के दो टुकड़े कर दिए। ला, एक तू चूस ले और एक मैं चूस लेता हूँ।
विपरीत वातावरण बन जाने पर भी अपने मिज़ाज़ को ठंडा रखना, अपने भीतर धैर्य और शांति को बरकरार रखने का नाम है – 'सकारात्मक सोच।' सोच को सकारात्मक रखने के लिए पहला काम क्या करो? मिज़ाज़ को ठंडा रखो।
दूसरा काम : सोच को पोजिटिव बनाने के लिए, हमेशा दूसरों के गुण देखो। कभी किसी के अवगण मत देखो। जब भी देखो, हमेशा ख़ासियत देखो,खामियाँ मत देखो। दनिया में कोई भी आदमी ऐसा नहीं है जिसमें चार ख़ामियाँ न हों। महावीर जी में भी चार कमियाँ थीं। अगर कमियाँ नहीं थीं तो क्यों उनको संन्यास लेना पड़ा और क्यों उनके कानों में कीलें ठोके गये? राम जी में भी चार कमियाँ थीं. और नहीं थी तो धोबी ने रामजी को क्यों धोया? सीताजी को वनवास क्यों दिलवा दिया? हर आदमी में दो कमियाँ होती हैं। अगर हम केवल कमियों पर गौर करते रहे तो किसी का भी सदुपयोग नहीं कर पाएँगे। सबमें दो कमियाँ हैं, आप कहेंगे - मेरी बह क्या है? छातीकटा है। आपने एक कमी देख ली ओर एक कमी को लेकर ऐसे पकड़ बैठे कि बहू से हाथ धो बैठे। सासूजी में भी दो कमी है। ऐसा नहीं है कि केवल बहूरानी में ही कमी है, सासजी में भी दो कमियाँ ज़रूर होंगी। अरे भाई-बहनो! कमियाँ सबमें हैं, पर कमियों पर गौर करना ‘कमीणायत' है। लोग पूछते हैं, वे वैश्य लोग, इतने पैसे वाले क्यों हो जाते हैं? ये इसलिए पैसे वाले हो जाते हैं क्योंकि ये कमीनियत का काम कम करते हैं और विशेषताओं को देखकर वैश्य होने का काम ज्यादा करते हैं। जो विशेषता देखे, वही वैश्य ! जो कमियाँ देखे, वह कमीण! जो खूबियाँ / ख़ासियत देखे, वह खूबसूरत ! इसलिए जब भी देखो हमेशा अच्छाइयों को देखो, जब भी अपने पास बिठाना हो अच्छे लोगों को बिठाओ। बैठना हो किसी के पास जाकर, तो अच्छे लोगों के पास जाकर बैठो। कबीर का कहना है -
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ मैं कबीर के दोहे को बदलूँगा और कहूँगा – 'अच्छे नियरे राखिये।' निंदक को छोड़ो, कोई निंदा कर रहा है, तो कर रहा है, अपन कहाँ तक ध्यान देते रहेंगे। मैं तो कहूँगा, निंदक की भाषा हटाओ।
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