Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 41
________________ चूड़ियाँ पहनकर मत बैठो। अगर तालाब में गिर गए हो तो तब भी चिन्ता मत करो। हाथ-पाँव चलाते रहो, चलाते रहो। तब तक चलाते रहो जब तक साँस है। अंतिम चरण तक विश्वास रखो - ईश्वर हमारे साथ है। ईश्वर उनके साथ है जो पुरुषार्थी हैं, जो अपना भाग्य खुद लिखते हैं। तेज दौडने वाला खरहा दुपहर चल कर बैठ गया। धीरे-धीरे चलकर कछुआ देखो बाजी मार गया। चलो कदम से कदम मिलाकर दर किनारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो। आज से यह संकल्प कर लो कि अब हम निठल्ले नहीं जियेंगे। मुफ़्त की नहीं खाएँगे। हम कर्म करेंगे। जीवन में कर्म का कल्पवृक्ष लहराएँगे। श्रेष्ठ कर्म ही व्यक्ति का श्रेष्ठ धर्म है। कर्म ही कामधेनु है और कर्म ही कल्पवृक्ष । जब कोई लोहे का काम करके टाटा बन सकता है और जूतों का काम करके बाटा बन सकता है, तो फिर हम निठल्ले क्यों बैठे रहें। करो, करने वाले को पूछा जायेगा, बैठने वाले को कोई नहीं पूछेगा। हिम्मत बटोरो। हम भी अगर अपने उपाश्रयस्थानकों में बैठे रहते, तो हमें भी पूछने वाला कोई नहीं होता। इस दुनिया में कोई किसी को नहीं पूछता, पूछने के लिए तुम्हें अपनी ताक़त को संजोना पड़ेगा। पूछने के लिए तुम्हें अपने दिल के ज़ज़्बों को जगाना पड़ेगा। कुछ ऐसा करो कि फोकस हर हाल में तुम पर हो। इसके लिए हिम्मत बटोरनी पड़ेगी और मैदान में आना पड़ेगा। क्या बिस्तर पर सोकर कोई आदमी तैरना सीख सकता है? घर में निठल्ले बैठे लोगों के घर लक्ष्मीजी नहीं आती। गाँधीजी अगर राष्ट्रपिता बने तो कुछ करना पड़ा। कभी इस देश में इमली के बीज इकट्ठे कर-करके एक आना पाव में बेचने वाला व्यक्ति, उन्हीं पैसों से किताबें खरीद करके पढ़ाई किया करता, और बढ़ते-बढ़ते अपने ज़ज्बों के कारण इतना बढता चला गया कि वह व्यक्ति केवल व्यक्ति नहीं रहा, वह व्यक्ति इस देश का महान वैज्ञानिक भी बना और देश का सबसे गरिमापूर्ण व्यक्तित्व, सबसे गरिमापूर्ण राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बना। आज जिस चन्द्रप्रभ को देशभर में पढ़ा और सुना जाता है, उसका अतीत यह है कि उसने कभी 9वीं कक्षा सप्लीमेंट्री परीक्षा से पास की है। जब नौवीं कक्षा में मेरे सप्लीमेंट्री आई थी तब मेरे क्लास टीचर ने मुझसे कहा था - बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे पिता बीमार हैं । मैंने कहा, यस सर । क्लास टीचर ने कहा - क्या 42 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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