Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 39
________________ - बातों में अटके हो। समय इतना आगे बढ़ रहा है और हम जहाँ थे वहीं के वहीं ठहरे हुए पड़े हैं। ज़रा सोचो कि जो चार आदमी साथ चल रहे थे उनमें से एक पीछे रह गया और तीन अगर आगे चलते रहे तो पीछे वाला क्या करेगा? दुनिया बढ़ रही है, समय बढ़ रहा है। अपने जीवन को गति दो । समाज, धर्म और देश को गति दो। आपके दादा जी ग़रीब थे । थे, क्योंकि पढ़े-लिखे नहीं थे । आपके पिताजी नौकरी करते थे । करते थे, क्योंकि उनके लिए कोई एप्रोच करने वाला नहीं था। लेकिन इस प्रगतिशील युग में आपके पैदा होने के बावजूद अगर आपका घर ग़रीब रहता है तो यह विचारने जैसी बात हुई । आपके जैसा पढ़ालिखा इंसान होने के बावजूद आप गरीब हैं। इसका मतलब आप आलसी हैं। दादा जी स्कूल नहीं गए, पापाजी आठवीं पास थे लेकिन बेटे को उन्होंने पढ़ा लिखा कर एम.बी.ए. करवाया, सी.ए. करवाया ताकि अपने घर का कायाकल्प हो सके और हम एम.बी.ए. कर चुके तब भी निकम्मे बैठे हैं। मुफ़्त की रोटी मत खाओ, मुफ़्त का खाना अपने लिए पाप समझो। जीवन एक यज्ञ है। इसके लिए आहुति दी जानी चाहिए। समय बढ़ रहा है, समय के साथ हम भी आगे बढ़ें, हमारा घर भी आगे बढ़े, हमारी सम्पन्नता भी आगे बढ़े, हमारी शिक्षा भी आगे बढ़े। बस, एक ही बात कि रुको मत। रुकना मौत है, चलना ही जीवन है 1 जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो ॥ जिंदगी में नई ऊर्जा भरी जा सकती है। अपन चाहें तो एक मिनट में जिंदगी बदली जा सकती है । बदलना चाहोगे तो अभी बदल जाओगे और नहीं बदलना चाहोगे तो किसी का पिता अपने पुत्र को भी, जूते मार कर भी आज तक नहीं बदल पाया है। मैं मुझको बदलूँगा । आप अपने आपको बदलेंगे । स्वयं का रूपांतरण ही जीवन की सबसे बड़ी पहल है । जीवन के लिए उसूल बना लो कि चलै सो चरै । गाय चलेगी तो जंगल में घास चरेगी और चलेगी ही नहीं तो क्या चरेगी। आप बैठे रहोगे तो भूखे मरोगे, कुछ करते रहोगे तो पाओगे । निठल्ले बैठे रहोगे तो भूखे प्यासे मरोगे। शेर को भी गुफा में बैठे-बैठे शिकार नहीं मिलता, बाहर निकलना पड़ेगा। किसी चींटी को देखो और देखकर समझो कि दिन भर वह कितनी मेहनत करती है, एक-एक कण के लिए। किसी चिड़िया को देखो तो समझ में आ जाएगा कि एक चिड़िया चार दानों के लिए कितनी मेहनत करती है । आप चाहे पुत्र हों या पापा, अथवा दादा, जब 40 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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