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फिर ऐसी महान जिंदगी जी जाओ कि लोग तुम पर सौ किताबें लिख सकें। अपने टेलेंट को, अपनी प्रतिभा को ऐसा ज़रूर बना लो।
आप लोग परिवार में रहते हैं तो मैं कहना चाहूँगा कि परिवार का माहौल ऐसा बनाएँ कि वह प्रतिभा के अनुरूप हो, प्रतिभा को जगाने के अनुरूप हो। अमुमन महिलाएँ कहती हैं - साहब, हमारा बच्चा दिन भर टी.वी. के आगे पड़ा रहता है, ये आम शिकायतें मिलती हैं। मैं कहना चाहूँगा कि वह दिन भर इसलिए टी.वी.के आगे पड़ा रहता है क्योंकि आपके घर में उसके मनोरंजन और ज्ञान-प्रतिभा को जगाने के लिए अन्य जो साधन चाहिए वे नहीं हैं। हर घर में एक लाइब्रेरी, हर घर में एक मिनी पुस्तकालय ज़रूर होना चाहिए। हर घर में चलचित्र कथाएँ रखो, रंगीन किताबें रखों, कहानियों की किताबें रखो। बच्चों को अगर मन के अनुरूप विषय मिलेंगे, किताबें मिलेंगी तो कौन आदमी टी.वी. के पास जाकर चिपकेगा? हम अपने घर के बच्चों की प्रतिभा को जगाने वाले साधन रखते नहीं हैं, तो वह टी.वी. के डिब्बे के आगे जाकर चिपकेगा। लोग कहते हैं कि साहब हमारे बच्चे चॉकलेट बहत खाते हैं तो भाई अपने घर में रोजाना ले देकर दो फल्के बनाते हो और लौकी की सब्जी बनाकर रख देते हो तो अब वह चॉकलेट या पिज्जा नहीं खाएगा तो क्या करेगा? थोड़ा टेस्ट चेंज करो। कभी इडली बनाओ, कभी डोसा बनाओ, कभी पिज्जा बनाओ।कभी ये करो कभी वह करो। बच्चे को याद भी नहीं आयेगा कि बाजारू चॉकलेट या पिज्जा खाया जाए। चॉकलेट खाने से दाँत खराब होते हैं. पर घर में करे क्या? मम्मी ले देकर वही लौकी की सब्जी बनाती है। अब वो आज का छोरा लौकी खाए? जो गायों को नहीं खिलाते वह बच्चों को खिलाते हो, तो फिर वो इधर-उधर की चीजें खाएगा। टमाटर की खट्टी-मीठी सब्जी बनाकर देखो, भिंडी की कुरकुरी सब्जी बनाकर देखो और बहत सारी सब्जियाँ हैं, बनाकर देखो तो सही बच्चों को कैसे भाती है? बच्चों का खाना बच्चों के हिसाब से होना चाहिए।
जीवन केवल एक रंग से नहीं बनता। क्या एक रंग से इन्द्र-धनुष बन जाता है? इन्द्र-धनुष को बनाने के लिए कई तरह के रंग समाविष्ट करने पड़ते हैं। आपके बच्चे आपसे किसी तरह की जिज्ञासा करे तो यह मत कहना कि जा अपने बाप से पूछ, माथा खा गया।अरे भाई वह आपसे जिज्ञासा कर रहा है। आपने एक बार उसे डाँट दिया तो दुबारा वह पूछेगा नहीं, परिणाम यह निकलेगा कि बच्चे के भीतर उसका जो टेलेंट जग रहा था, प्रतिभा जग रही थी, ज्ञान की जो प्यास जग
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