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सोच इंसान के भीतर दो तरह की धाराएँ चलती हैं, दो तरह की सोच और विचारधाराएँ चलती हैं। एक है 'सकारात्मक' और दूसरी है नकारात्मक'। जहाँ-जहाँ सकारात्मक धाराएँ बहती हैं वहाँ-वहाँ व्यक्ति के साथ जीवन का प्रसाद और पुरस्कार जुड़ते हैं और जहाँ-जहाँ नकारात्मक धाराएँ बहती हैं वहीं-वहीं पर जीवन में विषाद और अवसाद हमें घेर लिया करते है। ईर्ष्या, क्रोध, तनाव, चिन्ता, अहम् ये सब व्यक्ति के नकारात्मक सोच और नकारात्मक विचार-धाराओं के परिणाम हैं। प्रेम, शांति, करुणा, आनंद, भाईचारा, एक दूसरे को निभाने की सद्भावना इसी का नाम है 'सकारात्मक सोच'।
अगर कोई मुझसे पूछे कि मेरे जीवन के स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर रहने का सीधा सरल राज क्या है तो मैं ज़वाब दूंगा कि मेरी सकारात्मक सोच ही मेरे स्वस्थ, प्रसन्न और सदाबहार मधुर रहने का आधार है। शायद आज तक दुनिया में अनेक-अनेक तरह के मंत्र बने होंगे। किसी ने नवकार मंत्र बनाया, किसी ने गायत्री मंत्र बनाया या किसी ने कोई और मंत्र बनाया होगा। मैं नहीं जानता कि दुनिया में किस व्यक्ति को कौन से मंत्र का जाप करने पर कौन-सा फायदा हुआ, लेकिन मैं जिस मंत्र की बात कहता हूँ, जो मंत्र सारी दुनिया को दिया करता हूँ, वह आज तक कभी निष्फल नहीं हुआ, आज तक कभी व्यर्थ साबित नहीं हुआ और वह मंत्र, महामंत्र है 'सकारात्मक सोच' का मंत्र।
शायद और कोई मंत्र का जाप करो तो आपको संदेह हो सकता है कि मैंने अब तक एक लाख जाप कर लिया, मगर फिर भी परिणाम न आया। अरे, मैं तो कहूँगा कि एक लाख की बात छोड़ो, यदि सकारात्मक सोच को कोई व्यक्ति 3 मिनट के लिए भी अपना लेता है तो वह अपने आने वाले 30 मिनट को आनंददायी बना लेता है। जो अपने 30 मिनट को सकारात्मक बना लेता है वह अपने 30 घंटों को सुखदायी बना लेता है। जो अपने 30 घंटों को सकारात्मक बनाता है वह अपने 30 दिनों को सफल बनाता है। जो व्यक्ति 30 दिनों को सकारात्मक बनाता है वह अपने 3 वर्षों को सार्थक बनाता है और जो आदमी 3 वर्षों को सकारात्मक बनाता है वह अपनी जिंदगी के 30 सालों को सकारात्मक बनाने में सफल हो जाता है। जिस आदमी ने अपने 30 साल सकारात्मकता को समर्पित कर दिये उसके पास कभी क्रोध, ईर्ष्या, तनाव, चिंता की छाया भी नहीं मंडरा सकती।शायद और कोई मंत्र का जाप करेंगे तो उस जाप को करने के लिए आपको घंटों तपना पड़ेगा, जपना पड़ेगा, पर सकारात्मक सोच के मंत्र को अपनाने 72|
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