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प्रतिभा को निरवारें पेंसिल की
तरह
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हर माँ-बाप का यह सपना होता है, उनकी यह दिली तमन्ना रहती है कि उनके बच्चे बुलंदियों को छुएँ । वे अपने स्वयं का भविष्य भी अपने बच्चों में देखते हैं, अपना समाज और अपना देश भी उन्हें अपने बच्चों में ही दिखाई देता है। जो बच्चे माँ-बाप के सपनों को समझ लेते है, अपने जीवन को गंभीरता से ले लेते हैं, वे प्रकृति के द्वारा मिली हुई अपनी प्रतिभा का उपयोग करके निश्चित ही आसमानी ऊँचाइयों को छुआ करते हैं, लेकिन जो बच्चे माँ-बाप के सपनों को नहीं समझते, ग़लत आदत, ग़लत सोहब्बत, ग़लत परिवेश में चले जाया करते हैं, वे न केवल अपने केरियर को, बल्कि अपने जीवन को भी गर्त में डाल देते हैं। वे माँ-बाप के नाम को भी चुल्लू भर पानी में डुबो बैठते हैं, लेकिन जिन्होंने जीवन को गंभीरता से लिया है, माता-पिता के सपनों को अपना सपना बनाया है, वे धरती के चाहे जिस कोने में क्यों न चले जाएँ, खुद भी गौरवान्वित होंगे और अपने माता-पिता, समाज, धर्म और देश को भी गौरवान्वित करेंगे।
बात की शुरुआत मैं एक खास व्यक्तित्व के साथ करूँगा। एक व्यक्ति एक महाविद्यालय में सहायक लेक्चरार के रूप में कार्यरत हुआ। साल भर तक उसने बच्चों पर मेहनत की और बच्चों ने भी दिल लगाकर पढ़ाई की। आखिर परीक्षाएँ सम्पन्न हुईं। जब परीक्षा के परिणाम आने वाले थे तभी कॉलेज के प्रिंसिपल ने
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