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के पास । दोनों को डिबिया मिल गई । न कोई पैगाम, न कोई संदेशा । बस, डिबिया उठाओ और निकल जाओ । आगे माथा अपना खुद का लड़ाओ । माता-पिता का काम है आपको जन्म देना, लेकिन जन्म देने के बाद आपको क्या बनना, यह आप पर निर्भर है। ईश्वर अगर हम लोगों को धरती पर भेज देते हैं पर इसके बाद क्या बनना है संगीतकार बनना है कि जेबकतरा, यह तुम पर है। जो बनना चाहो वह बनो ।
दोनों रवाना हो गए। वे जो नागौर के महानुभाव थे, गए जयपुर राजा के पास और जाकर कहा कि हमारे महाराज ने आपके लिए यह अनमोल भेंट भेजी है। डिबिया ली, उन नवरत्नों से सजी हुई डिब्बी को खोला तो अन्दर एक और सोने की डिबिया मिली। उस सोने की डिबिया को जैसे ही खोला कि खोलते ही चौंक पड़े, अरे नागौर नरेश ने क्या हमारा अपमान किया है? अरे सोने की डिबिया में राख भेजी है। उठाकर सीधा उसे आदमी के मुँह पर फेंका और धक्के देकर बाहर निकाल दिया गया । वह भी बड़ा पशोपेश में आ गया कि राजा ने मेरे साथ न जाने कैसी मज़ाक की है? ऊपर तो नवरत्न सजाकर डिबिया दी, अन्दर सोने की डिबिया और भीतर में भर दी राख । धक्का खाना पड़ा। काला मुँह
करवा कर आ गया ।
सिंघवी जी गए उदयपुर के राणा के पास और वहाँ जाकर उन्होंने भी डिबिया भेंट की। नवरत्नों से सजी हुई डिबिया । खोला गया तो अन्दर सोने की डिबिया, पर उसे खोला गया तो अन्दर राख । राख देखते ही राणा भी आग बबूला हो उठे तुम्हारे राजा ने हमारा अपमान किया है, सो हमें भेंट में राख भेजी है। अब सिंघवी माथा घूमा। एक सेकण्ड के लिए उन्होंने सोचा और झट से परिस्थिति को सम्भालते हुए कहा - अरे राजन् ! महाराणा साहब ! यह राख नहीं है । अरे यह तो हमारी कुलदेवी भुआल माता की रक्षा है, रक्षा । अरे महाराज ! आप सोचिये तो सही कि क्या नागौर जैसे छोटे से नगर का राजा क्या कोई उदयपुर के महाराणा को राख भेजेगा? यह तो हमारे महाराज ने बड़ी कृपा की है। हमारे भुआल माता के जो पुजारी हैं उन्होंने पूरे सवा साल तक साधना की थी तब कहीं जाकर वह रक्षा प्रकट होकर आई है। महाराज यह बड़ी चमत्कारी राख है । कोई भी निःसंतान व्यक्ति अगर इसको गंगाजल में घोलकर पी ले तो नि:संतान को भी संतान हो जाती है ।
ओह ! महाराणा ने कहा - अच्छा ऐसी बात है? तब तो बहुत - बहुत साधुवाद
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