Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 29
________________ समय और तिथि भी निर्धारित कर दी। जिस दिन गुरु रवाना होने वाले थे, शिष्यों ने अपनी ओर से गुरुकुल के कुलपति से अनुरोध किया - भगवन् ! आप तो जा रहे हैं लेकिन जाने से पहले गुरुकुल का नया कुलपति नियुक्त करके गुरुकुल का दायित्व किसी-न-किसी को अवश्य सौंप जाएँ। कुलपति ने कहा - यह निर्णय भी मैं संन्यास लेने से पाँच मिनट पूर्व ही करूँगा। कुलपति संन्यास के दिन स्नानध्यान से निवृत्त होकर बीच आँगन में आ गए। सारे शिष्य भी आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर कुलपति के संन्यास के कार्यक्रम में शरीक हो रहे थे। सभी लोगों को इस बात की इंतज़ारी थी कि इतने सारे शिष्यों में से गुरुदेव न जाने किसको कुलपति नियुक्त करेंगे। कुलपति ने एक नज़र से सारे शिष्यों को देखा और कहा - मैं नया कुलपति का निर्णय करूँ उससे पहले तुम लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मेरा प्रश्न यह है कि दुनिया में लोहा ज़्यादा मूल्यवान है या चाँदी? सभी शिष्यों ने तपाक से एक स्वर में जवाब दिया - चाँदी ज़्यादा मूल्यवान है। गुरु ने सारे शिष्यों की ओर एक नज़र डाली। गुरु ने एक शिष्य ऐसा पाया जो मौन था। उसने कोई जवाब न दिया। गुरु ने उससे पूछा - वत्स! तुमने कोई जवाब नहीं दिया। क्या तुम इन सबके जवाब से सन्तुष्ट नहीं हो? शिष्य खड़ा हुआ, अदब से हाथ जोड़े और गुरुदेव से अनुरोध करने लगा - भंते! मुझे यह कहने के लिए क्षमा करें कि लोहा चाँदी से ज़्यादा मूल्यवान होता है। यह सुनते ही सारे शिष्य हँस पड़े। कहने लगे कि हमें पहले से ही पता था कि यह बुद्ध बुद्ध ही रहेगा।अरे, यह तो सारी दुनिया जानती है कि लोहा और चाँदी में से चाँदी ज्यादा मल्यवान होती है। गुरु ने उसको ध्यान से देखा और कहा - क्या तुम मुझे बता सकते हो कि तुमने लोहे को ज़्यादा मूल्यवान किस आधार पर कहा? शिष्य ने कहा - भंते ! मेरी समझ से दुनिया में मूल्य किसी वस्तु का नहीं होता। मूल्य होता है उस वस्तु में रहने वाली सम्भावना का। चाँदी मूल्यवान है यह तो सारी दुनिया जानती है, लेकिन चाँदी अपने मूल्य को न तो घटा सकती है और न ही बढ़ा सकती है। पर लोहा? लोहे को पारस का स्पर्श मिल जाये तो लोहा, लोहा नहीं रहेगा। लोहा, सोना बन जाएगा। गुरुदेव! मूल्य वस्तु का नहीं होता, मूल्य होता है वस्तु में रहने वाली सम्भावना का। गुरु ने उस शिष्य को अपने क़रीब बुलाया। आसन से खड़े हो गए और कुलपति के पद पर उसे नियुक्त करते हुए स्वयं 30| Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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