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संन्यास के लिए निकल पड़े।
हममें से आप या हम क्या हैं, मूल्य इस बात का नहीं है । मूल्य इस बात का है कि हम और आप क्या हो सकते हैं ! कौन आदमी क्रोधी है वो जाने, कौन महिला कमाती है या घर में रोटी-सब्जी बनाती है यह भी वो जाने।किस आदमी का कैसा स्वभाव है, कौन आदमी कितना धनी या ग़रीब है ये सारी व्यवस्थाएँ वो जाने । हम वर्तमान में क्या हैं, मूल्य इस बात का नहीं है, मूल्य इस बात का है कि हम अब और क्या हो सकते हैं । जहाँ तक आप पहुँचे, वह आपका यथार्थ हुआ। हम और आगे कहा पहुँच सकते हैं, यह बात मूल्यवान हुई।
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मूल्यवान है, मेरा जीवन मेरे लिए मूल्यवान है और आपका जीवन आपके लिए मूल्यवान है। जीवन मूल्यवान है इसीलिए कहना चाहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का मूल्य अख्तियार करना चाहिये। जैसे मिट्टी की समझ रखने वाला मिट्टी का मूल्य अर्जित करेगा। कचरे का मूल्य समझने वाला कचरे का मूल्य अर्जित करेगा। और तो और, दुनिया में कोई भी चीज़ जिसका मूल्य मिल सकता है व्यक्ति उस मूल्य को अर्जित करता है। यही बात मैं जीवन के लिए निवेदन करना चाहँगा कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का मूल्य अर्जित करना चाहिए। मिट्टी, मिट्टी रहती है लेकिन मिट्टी में भी अगर गुल खिलाने की कला आ जाए तो इसी मिट्टी में से फूल भी खिल जाते हैं। बीज, बीज रहता है, वही बीज वटवृक्ष बन जाता है। जिसे लोग गंदगी कहते हैं
और नगरपालिका के ट्रेक्टर के द्वारा उसे शहर के बाहर फेंक दिया करते हैं, अगर उसी गंदगी का ठीक से इस्तेमाल करने का तरीक़ा आ जाए तो गंदगी, गंदगी नहीं रहती। वही गंदगी खाद बनकर किसी फूल के लिए सुगन्ध का आधार बन जाया करती है। जैसे गंदगी को सुगन्ध में बदला जा सकता है, गंदगी के भी मूल्य को अर्जित किया जा सकता है, ऐसे ही हमें भी अपने जीवन का मूल्य अर्जित कर लेना चाहिए। इंसान की समझदारी इसी में है कि इंसान सोचे कि वह अपने जीवन का मूल्य प्राप्त कर रहा है या केवल ऐसे ही दिन बीतते जा रहे हैं। मेरे भाई ! किसी दिन को व्यर्थ मत जाने दो। हर दिन का मूल्य अर्जित करो, क्योंकि सबका जीवन निर्धारित वर्षों का, निर्धारित महीनों का, निर्धारित दिनों का है। जितने दिन हम लिखाकर लाये हैं उनमें से एक दिन भी आगे नहीं बढ़ा सकते। जीवन एक तय समय-सीमा का है। इसलिए किसी भी दिन को जाने मत दो, दिन का जो मूल्य है
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