Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ कहीं नौकरी लगवाऊँ तो आप काम कर लोगी?' बोली, 'साहब, मुझे नौकरी पर कौन रखेगा? आठवीं पास हूँ मुझे कौन लगाएगा।' मैंने कहा - 'ठीक है, काम करते हुए शर्म तो नहीं आती?' बोली – 'शर्म नहीं आयेगी।' मैंने कहा - 'झाड़ पोंछे लगवाऊँ तो?' बोले - शर्म नहीं आयेगी?' मैंने हाथो-हाथ एक स्कूल में फोन करवाया और कहा, 'एक बहिन जी को भेजता हूँ, उन्हें चपरासी की नौकरी पर लगवा देना।' उन्होंने कहा - 'साहब, पहले से ही पूरे चपरासी हैं, आवश्यकता नहीं है।' मैंने कहा, 'मैं किसी को चपरासी नहीं बना रहा हूँ। मैं किसी को स्वावलम्बी बनाकर आत्मनिर्भर इंसान बनाना चाहता हूँ। मैं किसी को भिखारी बनते हुए नहीं देख सकता।' बोले, 'आप कहना क्या चाहते हैं?' मैंने कहा, 'नौकरी पर तुम वहाँ रखो, पैसा मैं दिला दूंगा। तुम पैसे की चिंता मत करना। कल को उसकी बेटी को बड़ी होने पर यह न लगे कि मैं धर्मादे की रोटी खाकर पली हूँ, उसको यह लगे कि माँ ने मुझे मेहनत करके पढ़ाया और तैयार किया है।' खैर ! नौकरी रख ली गई। पहला महीना पूरा होते ही वह दो हज़ार रुपया लेकर हमारे पास आई और आकर कहने लगी - यह मेरे पहले महिने की तनख्वाह है, आपके चरणों में समर्पित है। मैंने कहा - बहिन, हमें नहीं चाहिए। आप इन दो हज़ार रुपयों में से पाँच सौ रुपये अपने कमरे का किराया चुकाना। एक हजार रुपया खाने-पीने पर खर्च करना। और पाँच सौ रुपया इस महीने बचा लेना, पाँच सौ रुपया अगले महीने बचा लेना और इस साल नौवीं की पढ़ाई का फार्म भर देना।' उसने ऐसा ही किया। उसने फिर से पढ़ाई शुरू की। सारी पढ़ाई पूर्ण की, बी.ए., बी.एड.,एम.ए., पी.एच.डी., की और आज वह राजस्थान में एक सम्मानित कॉलेज में लेक्चरार है। समाज जागे, इंसान जागे और अपने आप को बनाए। अपने आप को नहीं बना सकते तो जीने का क्या अर्थ है? मात्र धरती पर भारभूत हैं। वही व्यक्ति समाज में किसी के आगे जाकर हाथ फैलाये जो विकलांग है, अपाहिज है, अंधा है। अंधे को दान दे देने में कोई दिक्कत नहीं। कोई 85 वर्ष की वृद्ध विधवा महिला है तो उसे राशन-पानी दो, पर इसके अलावा किसी को दान मत दो। उसको इतना सहयोग कर दो कि वह आत्मनिर्भर बन सके, अपने पाँवों पर खड़ा हो सके। 24 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130