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जो के निष्कंटक राज्य करनार आ राजा बुद्धिमानोनो शिरोमणि हतो, तोपण पोतानी राणी विजयामां रातदिवस आशक्त रहतो हतो अने कई जाणतो नहोतो. ९. जे पुरुषोनुं चित्त विषयोमा लागेलुं रहे छे, तेना बधा गुण नाश पामे छ. तेनामां पाण्डित्य रहेतुं नथी, मनुष्यभाव रहेतो नथी, कुलीनता रहेती नथी अने सच्चाइ रहेती नथी. १०. कामी माणस कोइ वातथी डरतो नथी; पारकी सेवा संबंधी दीनताथी, चाडी खावा थी, निन्दाथी, अने पोतानो पराभव थवाथी पण-तिरस्कार थवाथी पण डरतो नथी. ११. कामथी पीडीत माणस भोजन, दान, विवेक, वैभव अने मानादिक सर्वने छोडी दे छे; बाजूं तो शुं, परंतु पोताना प्राणनो पण त्याग करी दे छे. १२.
पछी ते राजाए एवं धार्यु के, बधुं राज्य काष्ठांगारने सोंपी दउं; कारणके जे लोक राग के अनुरागथी आंधळा होय छे तेने विचार के अविचार होतो नथी; अर्थात् ते ज्यां सुधी सारी रीते ओळखवामां आवे नहि, त्यां सुधी सुंदर मालुम पडे छे. १३. ते वखते तेना मुख्य मुख्य मंत्रिओए आवीने कयु के, हे देव ! आपने विदित छे अने आप जाणो छो, तोपण अमारी आ प्रार्थना सांभळो; १४. ज्यारे राजाओए पोताना हृदयपर पण विश्वास करवो जोईए नहिं, तो पछी बीजा मनुष्य उपर भरोसो राखवा सर्वथा अनुचित छे; राजा नटोनी माफक आचरण करे छे, अर्थात् फक्त बहारथी विश्वासपात्र देखवामां आवे छे. लोक समजे छे के, अमारा पर