Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ श्री वादीभसिंहसूरि विरचित, श्री जीवंधर चरित्र. Dett ( क्षत्र चूडामणी) प्रकरण १ लुं. नी भक्ति मुक्तिरुपी कन्याने वरवामां द्रव्यनुं काम करे छे, अर्थात् वर कन्याने पहेरामणी पल्लं आपीनेज विवाह थाय छे तेम, जेनी भक्तिथीज मुक्ति प्राप्त थाय छे, एवा अंतरंग अने बहिरंग लक्ष्मीना स्वामी श्री जीनेंद्र भगवान ! आप संपूर्ण भक्तोनी ईच्छा पूर्ण करो. १. जे 15 हुं जीवंधर स्वामीनुं चरित्र संक्षिप्त रीतथी वर्णन करूं छु; कारण के बधुं अमृत पीवाथीज कंई सुख प्राप्त थतुं नथी. थोडुं पीवाथीज थाय छे. सारांश ए छे. के, जेवी रीते थोड़े अमृत पण सुखकारक छे, तेवीज रीते संक्षेपथी कहेलं पण ओ चरित्र आनंदने उत्पन्न करनार थशे. २.

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 132