Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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प्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
आचार्य भगवन्त के उपकारों को समाज कभी भुला नहीं सकता । उन्होंने हर अवस्था वाले हर मानव के विकास हेतु हर समय हित शिक्षा दी । भगवन् की देन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी। छोटे-छोटे बालक-बालिकाओं को धर्म के संस्कार देकर आस्थावान बनाना, उनके ज्ञानाभ्यास हेतु धार्मिक पाठशालाएँ और शिविरों का प्रायोजन, युवावर्ग के ज्ञान-वर्धन हेतु स्वाध्याय संघ, वाचनालय, ज्ञान भण्डार, वृद्ध जीवन के सुधार हेतु साधक शिविर, साधना शिविर, ध्यान शिविर, और नौ नियम सहित सामायिक साधना की प्रेरणाएँ फलीभूत हुई हैं । रूढ़ि के निकन्दन में भी भगवन् की प्रभावी प्रेरणा रही । व्यसनमुक्त समाज निर्माण में प्राचार्य भगवन् का उल्लेखनीय योगदान रहा है । मैंने अपने जीवन में देखा - एक - एक दिन में अस्सी अस्सी बीड़ी पीने वाले भाई ने भगवन् के सामने बण्डल तोड़कर फेंक दिया । डेढ़-डेढ़ तोला रोज अमल खाने वाले ने भगवन् के वचनों पर श्रद्धा के कारण अमल छोड़ दी ।
कोसाना भगवन् का चातुर्मास था । एक भाई रोज एक-डेढ़ तोला अमल लेता । बिना अमल के उसका उठना-बैठना नहीं होता । वह भगवन् के चरणों में उपस्थित हुआ । भगवन् के चरणों में जो भी प्राता वे उसे कुछ न कुछ अवश्य देते । प्राचार्य भगवन् ने उससे पूछा- तो वह बोला- बाबजी ! बिना अमल के नहीं चलता । प्राचार्य भगवन् की हित- मित- मधुर भाषा "भाई ! तुम्हारा जीवन इससे परेशान हो रहा है, क्यों नहीं तुम अमल को तिलांजलि दे देते ? " वह तैयार हो गया । भगवन् अन्तरज्ञानी थे । कहा- 'पहले सात दिन सावधानी रखना।' सात दिन पूरे हुए। वह बोला- ' बाबजी ! आपने निहाल कर दिया ।'
ऐसे-ऐसे भाई जिनका शराब का रोजाना खर्च ३०० /- रुपये था । एक भाई प्रार्थिक रूप से परेशान हो गया । पहुँच गया भगवन् के चरणों I 'बाबजी ! मुझसे छूटती नहीं ।' भगवन् ने समझाया - 'भाई ! शराब खराब है । तेरा तो क्या राजा-महाराजाओं के राज चले गये, पूरी द्वारिका जल गई । तू अब भी सम्भालना चाहे तो सम्भल सकता है ।' गुरुदेव की शान्त सहज वाणीका असर उसके मन पर हुआ और बोतल के फंदे से बरबाद होते-होते बच
गया ।
एक-दो नहीं, सौ-पच्चास नहीं, भगवन् ने सैकड़ों-हजारों लोगों को उपदेश देकर व्यसन मुक्त समाज - संरचना में महत्त्वपूर्ण योगदान किया । पूज्य श्राचार्य श्री शोभाचन्दजी महाराज की शताब्दी मनाने के प्रसंग पर हजारों लोग निर्व्यसनी बने । उसके पीछे भी भगवन् की ही प्रेरणा थी । भगवन् फरमाते थे - "सच्चा श्रावक वही है जो सप्त कुव्यसन का पहले त्याग करे । सप्त कुव्यसन का त्याग
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