Book Title: Jinvani Special issue on Acharya Hastimalji Vyaktitva evam Krutitva Visheshank 1992
Author(s): Narendra Bhanavat, Shanta Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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श्राचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा.
जाना था, तैयारियाँ चल रही थीं । प्राचार्य भगवन्त ने सुना तो सहज भाव से साथ में रहने वाले भाइयों से कहलवाया । गाँव वाले आये । भगवन् ने कहा"दूसरों को मारकर सुख की बात सोचना भ्रमपूर्ण है । तुम मेरे कहने से बकरे को छोड़ दो ।" आचार्य भगवन् के प्रभावशाली वचनों को सुनकर कुछ बलि देने के विरुद्ध हो गये, कुछ बलि देना चाहते थे । आखिर एक दूसरे की समझाइश से वह बलि रुक गई ।
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आचार्य भगवन् उज्जैन पधारे। उस समय विचरण - विहार में अनन्तपुरा ग्राम आया । वहाँ भी वर्षों से देवी के वहाँ बलि होती थी। एक पुजारी के शरीर में देवी उपस्थित होती, पुजारी थर-थर काँपता । गाँव वाले स्मरण करते, आवाज करते - देवी आई.......देवी आई । वहाँ बकरे की बलि दे दी जाती । भगवन् पाठशाला में विराजमान थे ।
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उन्होंने सुना तो पास रहने वाले भाइयों से कहा — गाँव वालों से सम्पर्क करो। उन्हें हिंसा के स्वरूप को समझाया जायेगा तो हो सकता है उनका मानस बदल जाय । गाँव वाले आचार्य भगवन्त के पास उपस्थित हुए। भगवन् ने कहा - " अहिंसा श्रेष्ठ धर्म है, तुम श्रहिंसा प्रेमी हो, हिंसा तुम्हें शोभा नहीं देती ।" गाँव के लोगों को भगवन् के वचन हितावह तो लगे परन्तु वर्षों की मान्यता छोड़ दें, ऐसा मन नहीं हुआ । गाँव वालों ने कहा- हम पुजारी को पूछेंगे । पुजारी से पूछा गया । पुजारी के शरीर में देवी का प्रवेश हुआ । वह बोला- 'अब बलि नहीं होनी चाहिए ।' भगवन् के सद् प्रयास से अनन्तपुरा में भी बलि रुकी ।
सूरसागर जोधपुर की बात है । २५ दिसम्बर, ८४ को 'प्रतिनिधि' पत्र के सम्पादक आचार्य भगवन्त के चरणों में उपस्थित हुए । उन्होंने सहज जिज्ञासा की- - आप सर्वश्रेष्ठ धर्म किसे मानते हैं ? प्राचार्य भगवन्त ने फरमाया-'साध्य वीतरागता है, साधकतम धर्म अहिंसा । सर्वश्रेष्ठ धर्म अहिंसा है ।' पत्रकार बन्धु ने फिर पूछा - ' आपकी हिंसा कहाँ तक पहुँचती है ?' जवाब था - 'प्राणी मात्र के प्रति ।' तीसरा प्रश्न था - ' मनुष्य के लिए क्या चिंतन है ? आप एकेन्द्रिय पृथ्वी-पानी के जीवों की हिंसा नहीं करते लेकिन अनाथ मानव के बच्चे जिन्हें सड़क पर फेंक दिया जाता है, ऐसे बच्चों के लिए आपके धर्म की क्या अपेक्षा होनी चाहिए ?"
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आचार्य देव उस समय मौनस्थ रहे । निवृत्ति की बात अलग है, प्रवृत्ति tator | साधक निवृत्ति प्रधान होता है । पत्रकार की बात भगवन्त के चिन्तन में थी । सहसा कुछ देर पश्चात् देवेन्द्रराजजी मेहता का आगमन होता है ।
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