Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जिनवाणी
| 10 जनवरी 2011 || हैं। वे पंचविध आचारों का पालन करते हैं और अपने शिष्य-शिष्याओं से पालन करवाते हैं।
गुरु भूले-भटके-अटके राहियों को सन्मार्ग प्रदर्शित करते हैं। गुरुओं ने कुशल चिकित्सक का विरुद निभाया है। भव रोग से पीड़ित मानव समाज को सम्यक्त्व रूपी औषधि खिलाकर रोग से मुक्त किया है एवं करते हैं।
गुरु की महिमा का मैं किन शब्दों में व्याख्यान करूँ? गुरु असीम आकाश है, जिसे कोई लांघ नहीं सकता । नभोमंडल में असंख्य तारे टिम-टिमाते हैं, पर गगन के भाल पर प्रकाश देने वाला चन्द्र एक ही होता है। रजनी के अन्धकार को मिटाने वाला और चारों दिशाओं को आलोकित करने वाला ज्योति मंडल में सूर्य एक ही होता है। खान से निकलने वाले हीरे मोती माणिक अनेक होते हैं, पर प्रधानता एक कोहिनूर हीरे की होती है। वाटिका में खिलने वाले फूल अनेक हैं, पर महत्त्व तो गुलाब के फूल का है। पृथ्वी पर पत्थर अनेक हैं पर विशेषता तो पारसमणि की ही है। इसी प्रकार संसार के रंगमंच पर साधु का बाना पहनकर घूमने वाले अनेक सन्त नामधारी हैं, पर महिमा, गरिमा एवं प्रशंसा तो एक ही सच्चे त्यागी, विरागी गुरु की है। अतः कहा जाता . है- “जगत को तारने वाले जगत में सन्तजन ही हैं।"
गुरु दया के देवता होते हैं। गुरु भारतीय संस्कृति के देदीप्यमान रत्न हैं। गुरु ही सन्तरूपी मणिमाला की दिव्यमणि होते हैं। कहा है
“यह तन विष की बेलड़ी, गुरु अमृत की खान।
शीश दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।" दीपक को प्रकाशित करने के लिए तेल की, घड़ी को चलाने के लिए चाबी की, शरीर को पुष्ट, मजबूत एवं ताकतवर बनाने के लिए दवा, पथ्य व पौष्टिक भोजन की आवश्यकता है। उससे भी बढ़कर जीवन को त्यागतपसे निखारने के लिए गुरु की आवश्यकता है। कहा जाता है- “गुरु के बिना जीवन शुरू नहीं।"
वास्तव में गुरु का सहारा ही जीवन का किनारा है । गुरु का सहारा ही शान्ति का नज़ारा है। "गूंगा इन्सान गीत गा नहीं सकता, ठहरा हुआ पांव मंजिल पा नहीं सकता। गुरुवर का सान्निध्य मिल गया तो, अंधेरे में भी कोई ठोकर खा नहीं सकता।" अन्त में गुरु को किस उपमा से उपमित करूँ
"मात कहूँ कि तात कहूँ, सखा कहूँगुरुराज । जे कहूँ तो ओछूबध्यो, मैं मान्यो जिनराज ||"
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