Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 345
________________ 345 | 10 जनवरी 2011 ॥ जिनवाणी चलता है- 'यह किया, अब यह करना है । वास्तविक जीवन से दूर भागकर सपनों की दुनियां में हम खो जाते हैं। शास्त्रकार भी कहते हैं कि परिग्रही व्यक्ति सोने के समय सो नहीं पाता, भोजन के समय भोजन नहीं कर पाता। रात-दिन उसके सिर पर परिग्रह का भूत चढा रहता है। संसार में परिग्रह और हिंसा के कारण ही समस्त दुःख व पीड़ाएं होती हैं तथा संसार का परिभ्रमण बढ़ता है; यह जानकर, समझकर हम परिग्रह को कम करने का प्रयत्न करें। 100 करोड़ जीव जब मरते है तो 99 करोड तिर्यच बनते हैं। 1 करोड़ जीव जब मरते है तो 99 लाख नरक में जाते हैं। 1 लाख जीव जब मरते है तो 99 हजार देवता बनते हैं। 1 हजार जीव जब मरते है तो 900 सम्मच्छिम मनुष्य बनते हैं। 100 जीव जब मरते है तो 90 अनार्य देश में जन्मते हैं। 10 जीव जब मरते है तो 9 अधर्मी होते हैं। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य भव मिला और उसके साथ ही उत्तम कुल, उत्तम धर्म भी प्राप्त हुआ अर्थात् जैन कुल मिला। जिन महापुरुषों ने मनुष्य भव की उपयोगिता को समझकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाते हुए संसार को त्यागकर साधना की ओर कदम बढाया है वे पूजनीय हैं, आदरणीय हैं, श्रेष्ठ हैं। उनके आचारमय श्रेष्ठ जीवन से हम भी प्रेरणा प्राप्त कर साधना की ओर अपने कदम गतिशील करें, इसी पावन कामना के साथ। ___ -संयोजक-श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ 'डागा टावर', 898-ए-1, दूसरी डी रोड़, सरदारपुरा-342003 (जोधपुर) फोन : 0291-2654427, 098280-32215 (मोबाइल) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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