Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 402
________________ 5. 402 | जिनवाणी 10 जनवरी 2011 4. वरिससयदिक्खियाए अज्जाए अज्ज दिक्खिओ साहू। अभिगमण वंदण नमसणेण विणएण सो पुञ्जो। मोक्खापाहुड, टीका 12.1 प्रवचनसार, 225/7 6. सुत्तपाहुड, गाथा 7 7. सुत्तपाहुड, 26 8. बृहत्कल्प 5/19-34 तक (चारित्र प्रकाश, पृष्ठ 139) 9. अंगुत्तरनिकाय 1.9 10. भगवती आराधना 396 तथा वि. टीका 421 11. मूलाचार 4.177, 184,185,187,191,196, सुत्तपाहुड 22 . 12. वही, 4.180, 10.61 13. मूलाचार वृत्ति 4.177 14. त्यक्ताशेषगृहस्थवेषरचना मंदोदरी संयता - पद्मपुराण 15. श्रीमती श्रमणी पार्वे बभूवुः परमार्यिका ।- पद्मपुराण 16. गणिणी...मूलाचार 4.178, 192, गणिनी महत्तरिकां- पद्मपुराण वृत्ति 4.178, 192 17. थेरीहिं सहंतरिदा भिक्खाय समोदरंति सदा ।- मूलाचार 4.194 18. मूलाचार 4.190 19. मूलाचार वृत्ति 4.190 20. सुत्तपाहुड 10, 21,22 21. लिंगं इत्थीणं हवदि भुंजइ पिंडं सुएयकालम्मि । ___ अज्जिय वि एक्कवत्था वत्थावरणेण भुंजेइ ।।- सुत्तपाहुड 22 22. सुत्तपाहुड, श्रुतसागरीय टीका, 22 23. खुड्डा य खुड्डियाओ.....भगवती आराधना, 396 24. भगवती आराधना 79 25. भगवती आराधना 80 विजयोदया टीका सहित 26. सागारधर्मामृत 8.37 27. आर्यिकाणामागमे अनुज्ञातं वस्त्रं कारणापेक्षया-भगवती आराधना विजयोदया, 423, पृ. 324 28. प्रवचनसार, गाथा 225 के बाद प्रक्षेपक गाथा 5 29. क्रियाकोशः महाकवि दौलतरामकृत 30. प्रायश्चित्त संग्रह, 119 31. आचारांग सूत्र 2.5.141 32. गच्छाचार पइन्ना 112 33. अगिहत्थमिस्सणिलये असण्णिवाए विसुद्धसंचारे। दो तिण्णि व अज्जाओ बहुगीओ वा सहत्थंति ॥ मूलचार 4.191 वृत्तिसहित । 33. बृहत्कल्प भाष्य, 1.2, 2.11,1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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