Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 385
________________ 385 10 जनवरी 2011 जिनवाणी जाता है। समवायांग सूत्र का द्वादशांगी में चतुर्थ स्थान है। जिसका आगमिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्त्व है। इसमें भी समिति-गुप्ति रूप अष्ट-प्रवचन माता का अधिकार उपलब्ध होता है। इस अंगशास्त्र के पाँचवें समवाय के सातवें सूत्र में "पंच समिईओ पण्णत्ताओ तं जहा......” का कथन कर उसके भेदों का भी नामोल्लेख किया है। इसी अंगशास्त्र के आठवें समवाय के सूत्र दो में “अट्ठ पवयण मायाओ पण्णत्ताओ तं जहा......” के माध्यम से विश्वबंधु प्रभु महावीर ने अष्ट प्रवचन माता को साधक आत्माओं के संयम पालन में आवश्यक निरूपित किया है। ___ उपर्युक्त विवेचित भावों पर आधारित निष्कर्ष रूप में प्राप्त होने वाले अर्थ को निम्नाङ्कित बिन्दुओं में रखा जा सकता है1. सम्यक् प्रकार से क्रिया करने का नाम समिति है। 2. समिति से अभिप्राय है- उचित, शुभ एवं शुद्ध में प्रवृत्ति- दूसरे शब्दों में एकाग्र परिणाम पूर्वक की जाने वाली आगमोक्त सम्यक् प्रवृत्ति। 3. समिति का अर्थ सम्यक् प्रवृत्ति है। सम्यक् और असम्यक् का मापदण्ड है अहिंसा। इस कारण अहिंसा मूलक प्रवृत्ति या आचार को समिति कहा है- जिसकी फलश्रुति मोक्ष है। साधक की साधना के निर्दोष निर्वहन में समिति का स्थान सर्वोपरि एवं महत्त्वपूर्ण है। इनकी संख्या पांच हैं, जिन्हें समिति के पाँच भेदों के रूप में दर्शाया गया है। विस्तार भय से मात्र उक्त भेदों का नामोल्लेख ही निम्नानुसार किया जा रहा है। समिति के भेदः1. ईर्या समिति 2. भाषा समिति 3. एषणा समिति 4. आदान भण्डमत्त निक्षेपण समिति और 5. उच्चार प्रस्रवण खेल सिंघाण जल्ल परिस्थापनिका समिति ये उपर्युक्त 5 भेद समिति के हैं। उल्लिखित 5 भेदों में से हमें प्रतिपाद्य विषय की पूर्णता की दृष्टि से समिति का तृतीय भेद ‘एषणा समिति' का सांगोपांग विवेचन अभीष्ट है। एषणा समिति अर्थ एवं परिभाषा- एषणा समिति क्या है? इस सम्बन्ध में सभी व्याख्याकारों के मूलभाव पूर्णरूप में एकरूपता लिये हुए हैं। किसी भी दृष्टि से विरोधाभास की स्थिति परिलक्षित नहीं होती है। जैसा कि अग्रांकित कतिपय महापुरुषों द्वारा अभिव्यक्त आगम आधारित भावों से सिद्ध होता है1. उत्तराध्ययन सूत्र की टीकाओं के आधार परः(1) शुद्ध एषणीय बयालीस दोष टालकर आहार पानी ग्रहण करना एषणा समिति है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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