Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जिनवाणी
10 जनवरी 2011 अनुभव, दूरदर्शिता एवं बुद्धिमत्ता के बल पर शिष्य के जीवन-उद्यान में सद्गुणों के बीज बोकर उसे सुवासित करता है। एक कुशल कुंभकार कुरूप मिट्टी जिसमें जल सोख लिया जाता है, उसके पात्र बना उन्हें अग्नि में तपाकर जल ही क्या दुग्ध-घी अमृत संचय के योग्य बना लेता है । सद्गुरु श्रमण भी इसी तरह अनगढ़ बेडौल मानव को ज्ञान, शिक्षा, सद्बोध, तप-त्याग - व्रत - प्रत्याख्यान के संस्कारों की अग्नि में तपाकर श्रावक के रूप में जीवन जीने की कला सिखा देते हैं ताकि वह एक श्रेष्ठ स्वर्ण पात्र बनकर जीवन में सारे सद्गुणों को सुरक्षित रख सके । शोषक को पोषक बनाने की विधि गुरु ही प्रदान करता है। अतः शिष्य या श्रावक तथा गुरु एवं श्रमण की पारस्परिक व्यवहार की आधारशिला शिष्य या श्रावक का विनय - विवेक युक्त एवं श्रद्धा से सराबोर व्यवहार ही है। यही शिष्य की विनयशीलता है जिससे गुरु शिष्य को एवं श्रमण श्रावक को दुर्लभ जीवन रहस्यों से अवगत करा मोक्षमार्ग का पथिक बना पाता है । इसी तरह बड़ों एवं गुरुओं के प्रति विनयशीलता के आधार पर कुरुक्षेत्र महाभारतीय युद्ध मैदान में बिना किसी शस्त्र का प्रयोग किए पितामह भीष्म, गुरु द्रोण एवं कृपाचार्य से धर्मराज युधिष्ठिर ने मात्र विजयी होने का आशीर्वाद ही प्राप्त नहीं किया, वरन् युद्ध के मैदान में किस विधि से उन्हें हराया जा सकता है, इसका रहस्य भी प्राप्त कर लिया एवं यही नहीं अपने मामा शल्यराज जो कर्ण के सारथी थे, उनसे भी न सिर्फ विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया वरन् युद्ध के मैदान में महावीर कर्ण को हतोत्साहित करने का वचन भी प्राप्त कर लिया। इसी से प्रेरित हो एक राजस्थानी कवि ने कितना सटीक कहा है- "गुरु कुलाल (कुंभकार) शिश कुंभ है, घड़-घड़ काढ़त खोट । अन्दर हाथ पसार के, बाहर मारत चोट ।” वस्तुतः शिष्य गुरु की एवं श्रावक श्रमण की कृति है । वे उसके निर्माता हैं।
मित्रों! आपको विदित ही है कि डाक्टरी की परीक्षा उत्तीर्ण करके भी डॉक्टरी इलाज के सच्चे एवं सार्थक नुस्खे और अनुभव प्राप्त करने के लिए डाक्टरी परीक्षा उत्तीर्ण व्यक्ति को किसी विषय विशेषज्ञ डाक्टर के उत्तीर्ण रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में ट्रेनिंग प्राप्त करनी पड़ती है। एल. एल. बी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भी असली वकालात शुरु करने के पूर्व उस वकालात के कुशल वकील के नियंत्रण में एक साल काम कर ट्रेनिंग लेनी पड़ती है, उसी प्रकार श्रावक या शिष्य को आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग जानने हेतु गुरु के सत्संग की, उसकी चरण पर्युपासना कर ज्ञान के गूढ़ तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने की साधना भी करनी पड़ती है। गुरु (श्रमण ) शिष्य (श्रावक) की छठी इन्द्रिय का दरवाजा खोल देता है। भीतर देखने वाली सुप्त आँख को जागृत कर देता है एवं इस तरह आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग सुगम बना देता है। जैसी शिष्य की योग्यता, वैसी ही प्राप्ति का अनुभव उसे होता शिष्य की योग्यता है श्रद्धा एवं गुरु की योग्यता है अनुग्रह ।
विनय के साथ विवेक भी श्रमण- श्रावक के शुभ सम्बन्धों की आधारशिला है। विवेक यानी “हेयोपादेयज्ञानं विवेकः।" मेरे लिये क्या उचित, क्या अनचित एवं क्या ग्राह्य है एवं क्या अग्राह्य है, इस अच्छे-बुरे में फर्क जानने की विद्या का नाम है विवेक । प्रभु ने धर्म ज्ञान में नहीं विनय एवं विवेक में
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