Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
View full book text
________________
322
जिनवाणी
|| 10 जनवरी 2011 | सबको आत्म-निर्भरता की प्रेरणा देता है।
आत्मवाद ने उपादान और निमित्त का समाधानकारी नियम हमारे सामने रखा। फलस्वरूप व्यक्ति ने समस्याओं के समाधान के लिए समस्याओं की तह में जाना सीखा। समस्या के मूल में जाकर किये गये समाधान से समस्या का स्थायी हल निकलता है। आज समाजशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं के सामने विषमता, पर्यावरण प्रदूषण, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि आदि न जाने कितनी-कितनी समस्याएँ हैं। उनके सामने आत्मा का, अहिंसा का, त्याग का कोई सुस्पष्ट दर्शन नहीं है। वे निमित्तो में ही समाधान ढूंढते रहते हैं। परिणामस्वरूप समस्याओं का स्थायी समाधान तो नहीं होता है सो ठीक, कभी-कभी एक समाधान अन्य नई समस्याओं को जन्म देने वाला सिद्ध हो जाता है। निपट भौतिकवादी और अनात्मवादी सोच और कार्य-शैली से आज संसार एक ऐसी जगह पर आ गया लगता है, जहाँ आगे विनाश के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
अहिंसा का सिद्धांत आत्मवाद की बुनियाद पर खड़ा है। यह बुनियाद बहुत मजबूत व बहुआयामी है। आगम ग्रन्थों में अहिंसा की जैसी मौलिक, सूक्ष्मतम व सर्वग्राही व्याख्या मिलती है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। आगम ग्रन्थों में वर्णित अहिंसा-सम्बन्धी सूक्ष्म विवेचन का पर्यावरण और पारिस्थितिकी की दृष्टि से बहुत महत्त्व है। ग्रन्थों में संसारी जीव के दो प्रकार बताये गये हैं - स्थावर और त्रस। जिन जीवों में गमनागमन की क्षमता का अभाव है, वेस्थावर जीव हैं तथा जिनमें चलने-फिरने की क्षमता है, वे त्रसजीव हैं। स्थावरजीव
__ श्रावक स्थावर जीवों की हिंसा का पूर्ण त्याग नहीं कर पाता है। लेकिन जिन कार्योंमें अत्यधिक स्थावरकायिक वसूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है, उन्हें महाआरम्भ' कहा गया और उनकी हिंसा से बचने के लिए निर्देश किये गये हैं। स्थावर जीवों के पाँच भेद हैं - 1. पृथ्वी - आगमों में स्थूल पृथ्वी के दो प्रकार बताये गये हैं - मृदु और कठोर। इनमें मृदु पृथ्वी के सात तथा
कठोर पृथ्वी के छत्तीस प्रकार बताए गये हैं। इन भेदों में कृषि योग्य मिट्टी से लेकर रत्न-मणि तक का उल्लेख है। पृथ्वी समस्त प्राणियों के लिए आधार है। प्रदूषण की मार पृथ्वी के नैसर्गिक वैविध्य पर पड़ी है। पृथ्वी के प्रदूषित होने से उसके आश्रित रहने वाले अनेक त्रस जीवों तथा स्थावर में वनस्पति आदि के जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ा। अनेक जीव-जन्तु और वनस्पतियाँ धरती से विलुप्त हो गईं। पृथ्वीकाय के
स्वरूप को जानकर इनकी विराधना से बचना चाहिये। 2. जल - स्थूल जल के पाँच भेद बताये गये हैं - शुद्ध उदक, ओस, हरतनु, कुहरा और हिम। सहज रूप से
सर्व-सुलभ जल आज बिकाऊ हो गया है, उसके लिए झगड़े होते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान विश्व में 100 करोड़ से अधिक लोग गन्दा पानी पीने को मजबूर हैं। एक को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है, दूसरा उसकी फिजूलखर्ची कर रहा है। ये हिंसा के अर्थतन्त्र के परिणाम हैं कि पूरा पर्यावरण-तन्त्र चरमरा गया है। जल-संयम और जल-संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org