Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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|| 10 जनवरी 2011 ||
जिनवाणी सार में
गुरुदेव की उपासना के सिवाय विद्वान् बन सकते हैं, पर विवेकी बनने के लिए गुरुदेव की उपासना सिवाय नहीं चल सकता । गुरुदेव के हृदय में प्रतिष्ठा किए बिना पुण्यबंध का स्वामी बन सकता है, पर कुशलानुबंधी पुण्य तो गुरुदेव के बहुमान भाव से बंधा है। गुरुदेव को हृदय में स्थापित किए बिना लोकप्रियता हासिल कर सकते हैं, पर प्रभुप्रियता तो गुरुदेव के प्रति सद्भावों की पराकाष्ठा हुए बिना संभव नहीं है। सुख की सामग्रियों की सद्गति गुरुदेव की भक्ति बिना हो सकती है, पर अनंतगुणों को विकसित करने की परमगति तो गुरुदेव की भक्ति से बँधी है। मन में यह प्रश्न उठता है कि इस वास्तविकता के पीछे क्या रहस्य है? संयम-जीवन की प्राप्ति की सार्थकता श्रुतज्ञान के अर्जन में है। इस श्रुतज्ञान के अर्जन में गुरुदेव को केन्द्र स्थान में रखने के बाद शास्त्रकारों की क्या जरूरत है? गुरुदेव को ध्यान में रखते हुए अर्जन होने वाले श्रुत को ज्ञानरूप न कहकर अज्ञानरूप कहने का शास्त्रकारों का क्या आशय है?
इस प्रश्न का जवाब देने से पहले पंचसूत्र (सूत्र तृतीय) की यह पंक्ति समझ लेने जैसी है'कयण्णुआखुएसा, करुणा च धम्मप्पहाणजणणीजण्णम्मि'
___ अर्थ इस पंक्ति का स्पष्ट है । कृतज्ञता और करुणा को लोक में धर्म की मुख्य माता कहा है। दूसरों के उपकार को याद रखने का काम कृतज्ञता का है, तो अन्य पर उपकार करते रहने का काम करुणा का है। हकीकत यह है कि जीवप्रथम किसी का उपकार स्वीकार करता है। अन्य पर उपकार तो सामर्थ्य प्राप्त करने के बाद करता है। बालक के ऊपर माता का प्रथम उपकार रहता है । कदाचित् सामर्थ्यवान होने के बाद वह किसी पर उपकार करता है। सार में उपकार प्रथम लेते हैं, उपकार बाद में करते हैं। इसी कारण इस पंक्ति में कृतज्ञता को पहले और करुणा को बाद में स्थान दिया है। जवाबदो,
संयम-जीवन में अपने ऊपर प्रधान उपकार किसका है? पापमय संसार की भयंकरता और दुःखमय संसार की असारता समझाकर अपने को गुणयुक्त और दोषमुक्त संयमजीवन की तरफ आकर्षित करने का प्रधान यश किसको मिलता है? इस जीवन में आने के पश्चात् अपने अध्यवसायों की निर्मलता को टिकाये रखने में अपने को प्राप्त हुई सफलता में केन्द्रस्थान कौन? कुसंस्कारों का जालिम आधिपत्य होते हुए भी उनके आदेश से अपने को बचाने के लिए सावधान करने वाला कौन है? छोड़े हुए संसार की तरफ मन का आकर्षण नहीं होने के लिए अपने को सतत जागृत कौन रखेगा? माता का वात्सल्य और पिता का प्रेम देकर अपने जीवन कारस कौन रखेगा? इन सभी प्रश्नों का जवाब एक ही है 'गुरुदेव'। सभी नदियाँ जैसे सागर में जाकर मिलती हैं, वैसे ही अपने
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