Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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जिनवाणी
| 10 जनवरी 2011 द्वारा प्ररूपित आगमज्ञान को हृदयगंम कर उसे आत्मसात् करने की उत्कण्ठा वाले शिष्यों द्वारा विनयादिपूर्ण मर्यादापूर्वक सेवित हो उसे आचार्य कहते हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि में आचार्य पूज्यपाद ने कहा है- 'आचरन्ति तस्माद् व्रतानीत्याचार्यः' अर्थात् जिसके निमित्त से व्रतों का आचरण करता है, वह आचार्य कहलाता है। इसी प्रकार गुरुतत्त्वविनिश्चिय (1.5) में भी बताया है
जह ढीवो अप्पाणं परं च दीवेइ दित्तिगुणजोगा।
तह रयणत्तयजोगा, गुरु वि मोहंधयारहरो ।। अर्थात् जिस प्रकार दीपक स्वयं एवं दूसरे को अपने दीप्तिगुण से प्रकाशित करता है, उसी प्रकार गुरु भी रत्नत्रय के योग से मोहान्धकार का हरण करता है। गुरु के लक्षण- जीवन के विकास के लिए सद्गुरु का सहयोग अत्यन्त आवश्यक है। सद्गुरु के अभाव में व्यक्ति कितना ही बुद्धिमान् क्यों न हो, लेकिन वह विकास की चरम सीमा को प्राप्त नहीं कर सकता है। प्रश्न उपस्थित होता है कि सद्गुरु की पहचान क्या, उसके क्या लक्षण हैं, जिन्हें देखकर जाना जा सके कि यह सद्गुरु है या असद्गुरु। भगवतीसूत्र में सद्गुरु के लक्षणों को बताते हुए कहा गया है
सूतत्थविउ लक्खण जुत्तो गच्छस्स मेढिभूओ य । गणतत्तिविप्पमुक्को, अत्थं वाटअ आयरियो ।।
(भगवतीसूत्र, अभयदेववृत्ति 1.1.1,मंगलाचरण) अर्थात् जो सूत्र और अर्थ दोनों का ज्ञाता हो, उत्कृष्ट कोटि के लक्षणों से युक्त हो, संघ के लिए मेढि के समान हो, जो अपने गण, गच्छ अथवा संघ को सभी प्रकार के सन्तापों से पूर्णतः विमुक्त रखने में सक्षम हो तथा जो अपने शिष्यों को आगमों की गूढ अर्थ सहित वाचना देता हो, वही आचार्य कहलाने योग्य है। इसी प्रकार आगमकारों ने आचार्य के छत्तीस गुणों का आवश्यक सूत्र में स्पष्ट निर्देश किया है
पंचिंदिय संवरणो तह णवविह बंभचेर-गुत्तिधरो। चउव्विह कसायमुक्को इअ अहारस गुणेहिं संजुत्तो ।। 1 ।। पंच महव्वय जुत्तो, पंच विहायारपालणसमत्थो।
पंच समिओ तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरु मज्झा ।।2।। अर्थात् पाँच इन्द्रियों पर संयम, नव गुप्तियों के साथ ब्रह्मचर्य का पालन, क्रोध आदि चार कषायों पर विजय, अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों का पूर्ण पालन, ज्ञानाचार आदि पाँच आचारों का पालन, ईर्या समिति आदि पांच समिति तथा मनोगुप्ति आदि तीन गुप्ति का आराधन , ये छत्तीस गुण जिस आचार्य में होते हैं, वही नमस्कार सूत्र के तीसरे पद में वंदन करने योग्य है।
इन गुणों के अतिरिक्त आचार्य,साधु,मुनि के मूलगुण एवं उत्तरगुण की विवेचना भी मिलती है। जो चारित्र रूपी वृक्ष के मूल (जड़) के समान हो वे मूलगुण एवं जो मूलगुणों की रक्षा के लिए चारित
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