Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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10 जनवरी 2011
जिनवाणी
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उन्होनें गुरु को इतना महत्त्व दिया कि जो गुरु सम्मान नहीं देता ऐसा व्यक्ति अज्ञानी है। अरे! भगवान के रूठने पर गुरु की शरण में जा सकते हैं, लेकिन गुरु के रूठने पर दुनिया में कोई ठोर अथवा जगह नहीं है। हमारे सद्शास्त्रों में ऐसा कथानक है कि भगवान महावीर के अंतेवासी शिष्य को गौतम स्वामी के उपदेश से रास्ते में ही केवलज्ञान हो गया, फिर भी वे छद्मस्थ गुरु गौतम की वैसी ही विनय भक्ति करते रहे जैसे एक शिष्य करता है। यह स्थिति उस समय स्पष्ट हुई जब भगवान महावीर के समवशरण में वह शिष्य केवलियों की सभा में बैठने जा रहा था और गुरु गौतम ने उन्हें टोका, फिर भी शिष्य मौन रहा। तब भगवान महावीर ने गौतम की शंका का समाधान करते हुए कहा कि केवली का अपमान न करो। यह है गुरु के प्रति विनय भावना का ज्वलंत उदाहरण । अतः गुरु ही तो हमें गोविन्द (सिद्ध) बनने का रास्ता बताता है, इसलिये नमस्कार मंत्र में अरिहन्त भगवन्तों को पहले नमन किया और फिर सिद्ध भगवान को । कहा भी है।
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गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पाया। बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो बताय ।।
- जी- 21, शास्त्रीनगर, जोधपुर (राज.)
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