Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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10 जनवरी 2011 जिनवाणी ॥
गुरु-महिमा का छोर नहीं
श्रीमती अभिलाषा हीरावत
गुरु के वैशिष्ट्य एवं महिमा पर यह भावपूर्ण लघु निबन्ध उनके प्रति भक्ति तथा समर्पण के लिए प्रेरित करता है। -सम्पादक
परमश्रद्धेय श्री प्रमोद मुनिजी म.सा. फरमाते हैं
“अनन्त धैर्य, अशेष क्षमा, अमित शान्ति अविरल दया, अवितथ संयम, अद्भुत मनःसंयम, आसान शय्या, अल्प वस्त्र, अतुलनीय ज्ञानामृत भोजन
बँधु कुटुम्बी, भय कहाँ योगी?" उपर्युक्त विशेष विशेषणों को पढ़ते-सुनते ही स्वतः आत्मा के अनवरत आनन्द-सरोवर में तन्मय, अपने केन्द्र पर स्थित गुरु का सजीव चित्रण समक्ष प्रतिबिम्बित हो जाता है।
वैसे तो लोक व्यवहार में माता-पिता और शिक्षक को गुरु माना जाता है, पर मोक्षमार्ग में आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीनों गुरु कहलाते हैं । यहाँ गुरुता, महानता या पूज्यता वीतरागता के होने पर ही आती है। वीतरागता कसौटी है पूज्यता की।
कहते हैं माँ की ममता का जगत में कोई ओर छोर नहीं है, पर माँ की ममता ससीम होती है। वह अपने अंगजात के लिए ही होती है और गुरु असीम आत्मीयता और वात्सल्य के अनन्त आकाश होते हैं, उनमें अनेक माँओं की ममता समाई होती है, जो प्राण,भूत, जीव एवं सत्त्व सभी के लिए बिना भेदभाव के सदा ही प्रवाहित होती है। गुरु का वात्सल्य सदैव स्फूर्तिदायक होता है। माता-पिता जन्म देते हैं, किन्तु गुरु जीवन बनाता है, जिन्दगी सार्थक रूप में जीना सिखलाता है। गुरु अमृत का वह महासागर है जिसकी हर बूंद कुबेर के खजाने से कम नहीं, जितना इस सागर में डुबकी लगाते हैं या गहरे उतरते चले जाते हैं उतना ही अनमोल रत्नों को सहज ही पाते चले जाते हैं। गुरु के नयनों में निःस्वार्थ वात्सल्य, हृदय में अपरिमित करुणा, दया एवं सरलता होती है। उनकी कथनी करनी एक समान होती है, अबोध बालक के समान निर्विकार छवि होती है। वे निरभिमानता, ब्रह्मचर्य के दिव्य तेज, अहिंसा के पुजारी इत्यादि अनेक गुणों से परिपूर्ण होते हैं । गुरु जिनवाणी को अन्तर्मन से अपनाते हैं, अमृत रस बरसाते हैं तथा सभी जीवों में प्रीति प्रसारित करते हैं । संत कबीरदासजी ने कहा है
"गुधियारी जानिए,रु कहिए परकाश। मिटि अज्ञाने ज्ञान दे, गुरु नाम है तास ||"
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