Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
View full book text
________________
10 जनवरी 2011
जिनवाणी
85
संभव नहीं है। यदि जीवन को सुव्यवस्थित, सम्यग् एवं निश्चित दिशा में आगे बढ़ाना है तो सुसाधुओं की चरण
शरण ग्रहण कर लेनी चाहिये। इसी में हमारा कल्याण निहित है।
सन्दर्भ:
1. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 5, गाथा 20
2. दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन 9, उद्देशक 3, गाथा 11
3. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 25, गाथा 32
4. सूयगडांग सूत्र, 3.3.11
5. उववाई सूत्र, 17
6. दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन 5 उद्देशक 1, गाथा 92
7. णण्णत्थ एरिसं वृत्तं, जं लोए परमदुच्चरं ।
विउलझण भाइस्स, ण भूयं ण भविस्सइ ॥ - दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन 6 गाथा 5
- 7/14, उत्तरी नेहरू नगर, विट्ठल बस्ती, बंगाली मिठाई के सामने, ब्यावर - 305901 (राज.)
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org