Book Title: Jinvani Guru Garima evam Shraman Jivan Visheshank 2011
Author(s): Dharmchand Jain, Others
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal
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10 जनवरी 2011
जिनवाणी
समान अपनी शुद्धता प्रकट कर ब्रह्म तत्व को प्राप्त कर ले -
सतगुरु सांचा सूरिवां, तातैं लोहिं लुहार | कसणी दे कंचन किया, ताह लिया तवसार।।
(कबीर)
संत कबीर की तरह अन्य निर्गुण संतों ने भी गुरु की महिमा का सांगोपांग बखान किया है। गुरु रविदास की वाणी से इस कथन को और भी पुष्टता मिलती है। संत रविदास ने कहा है कि एकमात्र गुरु ही हमें सच्चे प्रेम की दीक्षा देकर भवसागर से पार करता है। गुरु ज्ञान का दीपक प्रदान कर उसे प्रज्वलित करते हुए शिष्य से परमात्मा की भक्ति करवाता है तथा उसे आवागमन के चक्र से मुक्त करता है -
गुरु ग्यान दीपक दिया, बाती दह जलाय । रविदास हरि भगति कारने, जनम मरन विलमाय || ( रविदास)
इसी तरह माया रूपी दीपक को जलता देखकर जीव रूपी पतंगा अंधा होकर उस पर टूट पड़ता है और उसमें जल मरता है। रविदास जी समझाते हैं कि गुरु का ज्ञान प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति इस मायाजाल से मुक्त नहीं हो सकता। संसार रूपी सागर को पार करने के लिए गुरु रूपी पतवार का सहारा अत्यावश्यक है -
सागर दुतर अति, किधुं मूरिख यहु जान | रविदास गुरु पतवार है, नाम नाम करि जान ।।
( रविदास)
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रविदास की मान्यता के अनुसार गुरु परमात्मा तक पहुंचने के सभी रहस्यों को जानता है, किन्तु कोई व्यक्ति सच्चे गुरु के चरणों में न जाकर षड्दर्शन, वेद, पुराणों को पढ़कर तत्त्वज्ञान की बात करता है तो वह अधूरा है। प्राणायाम करना, शून्य समाधि लगाना, कान फड़वाना, गेरुए वस्त्र लपेटे रहना सद्गुरु के लक्षण नहीं। सद्गुरु तो अन्तर की रूहानी खोज कराकर शिष्य को परमात्मा से मिलाता है। इस सम्बन्ध में यह पद द्रष्टव्य है - गुरु सभु रहसि अगमहि जानें।
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ढूंढ़े काउ घट सास्त्रन मंह, किधुं कोउ वेद बखाने ।।
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सांस उसांस चढ़ावे बहु बिध, बैठहिं सूंनि समाधी.......
कहि रविदास मिल्यो गुरु पूरौ, जिहि अंतर हरि मिलाने || (रविदास)
रविदास कहते हैं कि सतगुरु सभी पिछले जन्मों के पापों को नष्ट कर शिष्य को सच्चा रास्ता दिखाते हैं। तथा कनक-कामिनी के बीच मग्न रहने वाले सांसारिक लोगों को रास्ता दिखाकर उनका उद्धार करते हैं। सच्चा गुरु सांसारिक सुख-दुःख, लाभ-हानि, जीवन-मरण, हर्ष-शोक की चिन्ता किए बिना निष्काम भाव से कर्त्तव्य पालन करता है तथा कमल के पत्ते के समान जल में रहते हुए भी जल से अछूता रहता है। वह करुणा और
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