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पद साध्य है। बीच के तीन पद साधक है एवं अंतिम चार पद साधन रूप हैं।
पंच परमेष्ठी का स्वरूप संसार स्वरुप अरिहंत -परोपकार स्वरुप स्वार्थ स्वरुप सिद्ध - देहाध्यास त्यागस्वरुप देहाध्यास स्वरुप आचार्य - सदाचार स्वरुप । अनाचार स्वरुप उपाध्याय - ज्ञान स्वरुप
अज्ञान स्वरुप साधु - सहिष्णुता स्वरुप असहिष्णुता स्वरुप
संसार स्वरुप का त्याग कर पंच परमेष्ठी के गुणों को प्राप्त करने के लिए पंच परमेष्ठी की आराधना साधना एवं जाप करने चाहिए।
नवपद जपें कर्म ख . नवकार का एक अक्षर बोलने पर = 7 सागरोपम जितने दुर्गति जनक पापों का नाश होता हैं। इसका एक पद बोलने पर = 50 सागरोपम जितने दुर्गति जनक पापों का नाश होता हैं। पूरी नवकार एक बार बोलने पर = 500 सागरोपम जितने दुर्गति जनक पापों का नाश होता हैं। 108 बार बोलने पर = 54,000 सागरोपम जितने दुर्गति जनक पापों का नाश होता हैं। नव लाख जाप करने पर = 45,00,00,000 सागरोपम जितने दुर्गति जनक पापों का नाश होता हैं। इसका भाव से स्मरण करने वाला = 3,7 या 11 भव में मोक्ष में जाता हैं।
) माला गिनने की विधि .
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बायाँ हाथ
दायाँ हाथ दायें हाथ में क्रमश: नंबर पर माला का मंत्र बोले, एक बार दायें हाथ के नंबर पूरे होने पर बाएँ हाथ का एक नंबर आगे बढ़ाए। इसी क्रम से जब बाएँ हाथ के 9 नंबर पूरे हो जाएँ तब एक माला पूरी होती है। जाप करते समय ध्यान रखने की बातें1. जाप का समय हमेशा एक ही होना उचित है।
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