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साहेबजी - इतना ही नहीं जयणा ! यह तो हुई वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात । परंतु इसी के साथ-साथ तुम यदि अपने शास्त्रीय दृष्टिकोण से देखोगी तो तुम्हें पता चलेगा कि परमात्मा ने रात्रिभोजन त्याग की आज्ञा कर हम पर कितना बड़ा उपकार किया है।
जयणा - हाँ ! साहेबजी. ! अब तो मुझे भी यह बात जानने की बड़ी उत्सुकता है।
साहेबजी - तो सुनो
शास्त्रीय दृष्टि से रात्रिभोजन त्याज्यः शासन नायक वीरजी ए, पामी परम आधार तो, रात्रि भोजन मत करो ए, जाणी पाप अपार तो,
धुवड, काग ने नागनाए, ते पामे अवतार तो, नियम नोकारशी नित करो ए, सांझे करो चउविहार तो ।
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देवता दिन के प्रथम भाग में, ऋषि मध्यान्ह में, पितृ देव तीसरे भाग में, और दानव चौथे भाग में खाते है। राक्षस रात्रि में खाते है अर्थात् रात्रि में राक्षस के खाने का समय होता है मनुष्य का नहीं । यदि हम रात्रि में भोजन करते है तो राक्षसों के द्वारा हमारे आहार को अदृश्य रुप से झूठा करने की संभावना रहती है। * जब घर में एक व्यक्ति मर जाता है, तब शोक मनाया जाता है तथा खाना नहीं खाते। तो फिर दिन का पति (सूर्य) अस्त हो जाने पर रात्रि में भोजन कैसे कर सकते है ?
चिड़ियाँ, तोता, कौआ, कबूतर, मोर आदि पक्षी भी सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करते । चाहे कितनी भी लाईट का प्रकाश हो फिर भी वे न तो उड़ते है और न ही खाते हैं। इन पक्षियों को किसी धर्मंगुरु ने रात्रिभोजन त्याग का नियम नहीं दिया। परंतु कुदरती ही ये पशु-पक्षी रात्रिभोजन को त्याग देते हैं । रात्री भोजन करने वाले मनुष्य के पास एक पक्षी जितनी भी समझ नहीं होती है।
* सूर्य के प्रकाश में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं होती। क्योंकि सूर्य का प्रकाश सूक्ष्म जीवों के लिए अवरोधक तत्त्व है। रात्रि में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति अधिक मात्रा में होने से सूक्ष्म-जीव-जंतु भोजन में गिर जाए तो भी दिखाई नहीं देते।
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रात्रिभोजन करते समय खाने में चींटि आने से बुद्धि भ्रष्ट, जूँ से जलोदर, मक्खी से उल्टी, मकड़ी से कुष्ट रोग, काँटा या लकड़ी के टुकड़े से गले में वेदना, बाल से स्वर भंग होता है।
* रात्रिभोजन करने वाले मनुष्य परभव में नरक या छट्ठे आरे में अथवा उल्लू, कौआ, बिल्ली, गिद्ध, भूंड, साँप, बिच्छू के भवों में जन्म लेते हैं।
जयणा - साहेबजी.! रात्रिभोजन करने के परिणाम सुनकर मेरी आत्मा तो काँप उठी है। मुझे तो डर है कि
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