Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 89
________________ मन में भी नहीं आये। संगम भगवान को कष्ट देते-देते थक गया, किन्तु उन्हें विचलित नहीं कर सका । आखिर हारकर वह जाने लगा। तब प्रभु ने सोचा कि जहाँ सारी दुनिया मेरे निमित्त से कर्मों को तोड़ रही है वहाँ यह मुझे निमित्त बनाकर कर्मों से भारी बन रहा है। इन भावों से प्रभु के हृदय की करुणा आँखों के आँसू बनकर बरसने लगी, धन्य है ! कारुण्य सागर प्रभु को ! जो अपकारी के प्रति भी तारकता धारण करते हैं। (7) प्रभु का अनार्य देश में विहार - भगवान ने अपना नौंवा चातुर्मास अनार्य देश में व्यतीत किया। लोगों ने बहुत समझाया-वहाँ के लोग हिंसक, क्रूर और माँसाहारी होते हैं। वे नर-माँस खाते हैं। परिचय न बताने पर पिटाई करते हैं, शिकारी कुत्ते पीछे छोड़ देते हैं। अत: आप वहाँ न जाये । भगवान रुके नहीं, विहार कर आदिवासियों के बीच पहुँच गये। एक बार वे गाँव में जा रहे थे। ग्रामवासी लोगों ने कहा - "हे नग्न ! तुम किसलिए हमारे गाँव में जा रहे हो, वापस चले जाओ।” ठहरने के लिए किसी ने स्थान नहीं दिया, प्रभु वहाँ से वापस चले आये और सघन वृक्षों के नीचे विश्राम किया। धन्य है ! प्रभु की शरद ऋतु के जल समान निर्मल मनोभावों से आत्मानंद में मग्नता को । • • एक बार प्रभु पूर्व दिशा की ओर मुँह कर खड़े-खड़े सूर्य का आतप ले रहे थे। कुछ लोग सामने आकर खड़े हो गए, पर भगवान ने उनकी ओर नहीं देखा तो वे चिढ़ गये और उन पर भूँककर आगे चले गये। भगवान शांत रहे। बच्चें उनकी आंखों में धूल फेंकते, पत्थर फेंकते, गाली देते पर भगवान के मन में उनके प्रति भी प्रेम प्रवाहित रहता। (8) चंदनबाला के हाथ से पारणा-' उसकी कथा इस प्रकार है : : चंपानगरी के दधिवाहन राजा की धारिणी रानी की वसुमती पुत्री थी। एक बार कौशंबी के शतानीक राजा ने राज्य विरोध के कारण चंपानगरी को घेर लिया। युद्ध में दधिवाहन राजा राज्य छोड़कर भाग गए। शतानीक राजा ने चंपापुरी को लूटा। एक सैनिक ने धारिणी रानी एवं वसुमति को पकड़ लिया। उसने धारिणी रानी को अपनी स्त्री बनने को कहा। तब धारिणी रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जीभ खींचकर अपने प्राण त्याग दिये। धारिणी रानी के मरने से सैनिक डर गया और उसने वसुमती से कहा कि “ मैं तुझसे शादी नहीं करूँगा। तुम मुझसे मत डरो। " सैनिक उसे अपने घर ले गया। तब सैनिक की पत्नी ने उसे बेचकर रूपये लाने को कहा। इससे सैनिक उसे कौशंबी नगरी के बाज़ार में बेचने के लिए ले गया। वहाँ एक वेश्या उसे खरीदने आयी लेकिन महामंत्र के स्मरण से कुछ बंदर वहाँ आकर वेश्या को काटने लगे जिससे वेश्या भाग गई। इस प्रकार वेश्या से वसुमती की रक्षा हो गई। फिर धनावह सेठ उसे खरीदकर अपने घर ले गए। वसुमती 061

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