Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 203
________________ । मुझे पढ़कर ही आगे बढे सूत्रोच्चार में खास ध्यान रखने योग्य बाते? गाथा याद करने से पहले निम्न बातों का विशेषध्यान रखें - * सूत्र में पद पूर्ण होने पर अल्पविराम, संपदा पूर्ण होने पर पूर्णविराम एवं सामासिक पदों में शब्दों की स्पष्टता के लिए हाइफन दिये हुए हैं। जिस प्रकार अल्पविराम, पूर्णविराम दिये हो, उसी प्रकार अल्पविराम आदि लेते हुए सूत्र बोलें एवं जहाँ प्रश्नात्मक संबोधन आदि चिन्ह हो वहाँ बोलते समय उस टॉन का उपयोग करें। * यदि अल्पविराम के पहले भी रुकने की जरुरत पड़े तो (-) हाइफन के अनुसार शब्द बोले। लेकिन हाइफन की उपेक्षा कर कम से कम शब्द को न तोड़े। जैसे 'पुक्खरवर-दीवड्ढे', 'धायई-संडे अजंबूदीवे अ', 'संसार-दावानल-दाहनीरं', 'सारं वीरागम-जलनिधिं सादरं साधु सेवे' इसमें हाइफन () का उपयोग न रखने पर 'पुक्खरवरदी' कई लोग बोल देते है एवं 'संसार दावा' बोलकर 'नल' अलग बोलते है। तो यह गलत है, इसलिए उपयोग पूर्वक सीखें। * जं किंचि नाम तित्थं में नामतित्थं साथ में नहीं बोलना, लेकिन नाम और तित्थं अलग-अलग बोलने चाहिए। यहाँ नाम का अर्थ है वास्तव में। * नमुत्थु और णं अलग-अलग बोलने चाहिए तथा उस समय दोनों हाथ की अंजलि को जमीन पर स्पर्श करके शीष झुकाना चाहिए। * धम्मसार हीणं ऐसे नहीं बोलना, क्योंकि इसका अर्थ होता है कि भगवान धर्म के सार से रहित है। धम्म-सारहीणं (धम्म-सारही-णं) ऐसे बोलने से इसका अर्थ भगवान धर्म के सारथी है ऐसा होता है। * इसी तरह सारंवीरा... गमजलनिधिं न बोलकर, राग में गाते हुए भी सारं... वीरागम जलनिधिं बोलना चाहिए। * प्राय: तो सूत्र के सामने शब्द के अनुसार अर्थ देने की कोशिश की है लेकिन कहीं-कहीं अन्वय के अनुसार अर्थ दिया है। सूत्र पर जो नम्बर दिये गये है तदनुसार अर्थ के नम्बर देखने पर शब्दार्थ प्राप्त होंगे। तथा संलग्न अर्थ पढ़ेंगे तो आपको सहज गाथार्थ समझ में आ जाएगा।

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