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'रिसह! सत्तुंजि, उनिंति पहु नेमिजिण। 'शत्रुजय पर ऋषभदेव! गिरनार पर हे नेमिनाथ 'प्रभु! जयउ "वीर! सच्चउरी मंडण। 'सांचोर के श्रृंगार हे "महावीर प्रभो! "भरूअच्छहिं "मुणिसुव्वय! 'भरूच में हे "मुनिसुव्रत जिन! "मुहरि "पास!"दुह"दुरिअ"खंडण।। "मथुरा में दुःख व "पाप के "नाशक हे "पार्श्वनाथ!
(आपकी जय हो।) 1 अवरविदेहिं "तित्थयरा,
1 अन्य क्षेत्र एवं महाविदेह क्षेत्र में रहे हुए "तीर्थंकर 2°चिहुं "दिसि विदिसि जिं के वि चारों दिशाओं एवं विदिशाओं में जो कोई तीर्थंकर तीआणागय संपइय,
हुए हैं, होने वाले हैं, व "वर्तमान में जो विद्यमान हैं, वंदु "जिण"सव्वे वि।।3। "उन सब जिनेश्वरों को मैं वंदन करता हूँ।।3।। 'सत्ताणवइ सहस्सा,
'तीन लोक में स्थित °8 करोड़(8,00,00,000) 'लक्खा छप्पन अट्ठकोडिओ; "56 °लाख (56,00,000) 'सत्तानवे हज़ार(97,000) 'बत्तीस "सय"बासियाई,
'बत्तीस "सौ (3,200) "बयासी (82) 'तिअलोए. चेइए"वंदे।।4।। शाश्वत जिन मंदिरों को "मैं वंदन करता हूँ।।4 ।। 'पनरस कोडि सयाई,
तीन लोक में स्थित पन्द्रह सौ करोड़(15,00,00,00,000) 'कोडि बायाल, लक्ख अडवन्ना; 'बयालीस करोड़ (42,00,00,000)
अट्ठावन लाख (58,00,000) 'छत्तीस सहस"असीइं,
'छत्तीस हज़ार (36,000) "अस्सी (80) "सासय"बिंबाई "पणमामि ।।5।। "शाश्वत "बिम्बों को मैं "प्रणाम करता हूँ।।5।। 2. जं किंचि सूत्र
। भावार्थ- तीन लोक के तीर्थ एवं प्रभु प्रतिमाओं को वंदन करने का यह सूत्र है । चैत्यवंदन करते समय इसका उपयोग किया जाता है। जंकिंचिनाम'तित्थं,
'स्वर्ग, पाताल (एवं) मनुष्य 'लोक में 'सग्गे पायालि माणुसे लोए;
जो कोई भी तीर्थ है;