Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 204
________________ जगचिन्तामणि सूत्र भावार्थ - देववंदन एवं सुबह के प्रतिक्रमण आदि में बोले जाने वाले इस सूत्र में तीर्थंकरों की स्तुति, उनका वर्णन एवं पाँच प्राचीन तीर्थों का निर्देश, शाश्वत चैत्य (मन्दिर) एवं शाश्वत जिन प्रतिमाओं की गणना-वंदना बताई है। इस सूत्र की प्रथम दो गाथाओं की रचना गौतम स्वामी ने अष्टापद तीर्थ पर की थी। इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूं? इच्छं. 'जग चिन्तामणि! जग नाह! हे 'जगत के चिंतामणिरत्न! हे जगत के नाथ! 'जग गुरू!'जग रक्खण! हे जगत के गुरु! हे 'जगत के रक्षक! 'जग"बंधव!"जग"सत्थ-वाह! हे जगत के "बन्धु! (सगे!) हे "जगत के "सार्थवाह! "जग"भाव"विअक्खण! हे "जगत के "भावों के "ज्ञाता! अट्ठा-वय"संठविय "रूव! हे "अष्टापद पर्वत पर "स्थापित "बिंब वाले! "कम्मट्ठविणासण! हे "आठ कर्मों के विनाशक! "चउवीसंपि"जिण-वर! हे "चौबीस "जिनेन्द्र! जयंतु अप्पडिहय"सासण! ||1|| हे अबाधित "शासनवाले! आप जयवंत रहों ।।1।। 'कम्म-भूमिहिंकम्म-भूमिहिं पळम संघयणि, 'कर्मभूमिओं में प्रथम वज्र ऋषभ नाराच संघयण वाले 'उक्कोसय सत्तरि-सय, 'उत्कृष्ट से एक सौ सत्तर(170) 'जिण-वराण'विहरंत लडभइ, जिनेश्वर 'विचरते हुए मिलते हैं। 'नवकोडिहिं केवलीण, उत्कृष्ट 9 क्रोड "केवलज्ञानी एवं "कोडिसहस्स नव"साहु“गम्मइ। "9000 क्रोड "साधु "पाये जाते हैं। "संपइ"जिणवर "वीस, “वर्तमान में "20 "जिनवर, मुणि-"बिहुं "कोडिहिं "वरनाण; "2"क्रोड "केवलज्ञानी मुनि, समणह"कोर्डि'सहस्स दुअ, दो "हज़ार "क्रोड *साधु है। थुणिजइ “निच्चविहाणि।।2।। “नित्य प्रात: काल में (उनकी) "स्तुति की जाती है।।2।। जयउ 'सामिय! जयउ सामिय! हे 'स्वामिन् ! आपकी जय हो, आपकी जय हो।

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