Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 218
________________ Capr 11. संसार-दावानल सूत्र बदर भावार्थ- इस सूत्र में चार स्तुतियाँ है। उनमें पहली स्तुति महावीर स्वामी की है, दूसरी स्तुति सर्व जिनों की है, तीसरी स्तुति श्रुतसागर अर्थात् द्वादशाङ्गी की है और चौथी स्तुति श्रुतदेवी की है। 'संसार दावानल दाह'नीरं, 'संसार रुपी दावानल के ताप के लिए जल समान 'संमोह धूली'हरणे समीरं। 'अज्ञान स्वरुप धूल को दूर करने में पवन के समान माया रसा"दारण सार" सीरं, मायारुप "पृथ्वी का "विदारण करने में समर्थ "हल के समान "नमामि "वीरं "गिरि-सार"धीरम्।।1।। "मेरुपर्वत जैसे "स्थिर श्री महावीर स्वामी को "मैं नमस्कार करता हूँ।।1।। 'भावावनाम सुर दानव मानवेन 'भक्तिभाव से प्रणाम करते हुए सुरेन्द्र- दानवेन्द्र, नरेन्द्रों के 'चूला विलोल'कमलावलि मालितानि। 'मुकुटों में स्थित 'कमल श्रेणी से पूजित, "संपूरिता भिनत "लोक"समीहितानि, नमन करनेवाले "लोगों के "वाञ्छित को "पूर्ण करने वाले "कामं "नमामि 1 श्री जिनेश्वर देवों के "चरणों को आदरपूर्वक "जिनराज"पदानितानि ।।2।। 16मैं नमस्कार करता हूँ।।2।। 'बोधागाधं 'ज्ञान द्वारा गम्भीर 'सुपद पदवी नीर पूरा भिरामं, 'सुन्दर पदरचना रुप जल के उछलते प्रवाह से 'मनोहर, 'जीवा हिंसा विरल"लहरी- 'जीवों की अहिंसा रुप “निरन्तर "तरंगों के "संगमा“गाह "देहं। संबंध से जिनका "देह "अति गहन है। "चूला-"वेलं "गुरू गम "मणि- चूलिका रुप “ज्वार (भरती) वाले, "बड़े-बड़े 1 आलापक रुप "रत्नों से °व्याप्त, "संकुलं 'दूर पारं, "दूर है "किनारा जिसका। सारं "वीरा गम जलनिधिं ऐसे "श्रेष्ठ "महावीर स्वामी के आगमरुप "समुद्र की "सादरं साधु सेवे ।।।। "आदर सहित विधिपूर्वक उपासना करता हूँ ।।3।। 'आमूलालोल-धूली-'बहुल 'मूल पर्यन्त डोलते हुए, पराग से भरचक (160)

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