Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 219
________________ 'परिमलाऽऽलीढ-'लोलाऽलि-माला सुगन्ध में आसक्त 'चपल 'भ्रमरों की श्रेणियों के 'झंकार शब्द से 'प्रधान व निर्मल पंखुडीवाले 'झंकाराराव-सारामलदल 'कमलागार - "भूमिनिवासे ! "कमल स्वरूप "गृहभूमि पर निवास करने वाली, "छाया " संभार "सारे ! "वरकमल "करे ! "कान्ति "पुंज से "शोभायमान, "हाथ में "सुन्दर कमलवाली " देदीप्यमान हार से मनोहर, "तारहाराभिरामे ! "वाणी" संदोह " देहे ! " भव विरह वरं " वचनों के "समूह रुप "देहवाली, "हे (श्रुत) देवी! 24 "मुझे " मोक्ष का श्रेष्ठ " वरदान दें। ||4|| 21 " देहि मे देवि ! सारं ॥14 ॥ चैत्यवंदन की विधि संपूर्ण इरियावहियं, तीन खमा., इच्छा. संदिसह भग., चैत्य. करूं ? इच्छं चैत्यवंदन, जंकिंचि, नमुत्थुणं, जावंति, खमा. जावंत, स्तवन या उवस्सग्गहरं, जय वीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ एक नवकार का काउ. प्रगट स्तुति, खमासमणा। अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कड़म् । पोरिसि-साढ़पोरिसि का पच्चक्खाण ( उग्गए सूरे, नमुक्कारसहिअं, पोरिसिं, साड्ढपोरिसिं मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाइ, चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहि वत्तिआगारेणं वोसिरई । तुमने जब धरती पर पहला श्वास लिया था, तब तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे पास थे, जब तुम्हारे माता-पिता अंतिम श्वास ले, तब तुम उनके पास रहना। 161

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