Book Title: Jainism Course Part 01
Author(s): Maniprabhashreeji
Publisher: Adinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi

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Page 206
________________ जाई जिण बिम्बाई, "ताई "सव्वाई "वंदामि॥ वहाँ जितने जिनबिम्ब है, 1°उन 'सबको "मैं वंदन करता हूँ। भावार्थ- इस सूत्र में अरिहंत परमात्मा की 33 विशेषणों से विशिष्ट स्तवना की गई है। इसे शक्रस्तव भी कहा जाता है। 'नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ।।1।।'नमस्कार हो; अरिहंतों को, भगवंतों को।।1।। 'आइगराणं, तित्थयराणं, 'आदिकरों को, तीर्थ के संस्थापक को, 'सयं-संबुद्धाणं।।2।। "स्वयं बोध प्राप्त किये हुए को।।2।। 'पुरिसुत्तमाणं, पुरिस सीहाणं, 'पुरुषों में उत्तम को, पुरुषों में सिंह समान को, 'पुरिस वरपुंडरीयाणं, 'पुरुषों में श्रेष्ठ कमल के समान को, 'पुरिस'वरगंधहत्थीणं।।3।। “पुरुषों में श्रेष्ठ गंधहस्ती के समान को।।3।। 'लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं 'लोक में उत्तम को, लोक के नाथ को, 'लोगहियाणं लोगपईवाणं, 'लोक में हित करने वाले को, लोक के लिए प्रदीप के समान को 'लोग पञ्जोअगराण।।4।। 'लोक में उत्कृष्ट प्रकाश करने वाले को।।4।। 'अभय दयाणं, चक्खुदयाणं 'अभय देने वाले को, नेत्रों को देने वाले को, 'मग्गदयाणं, सरणदयाणं 'मार्ग के दाता को, शरण देने वाले को, 'बोहिदयाणं।15।। 'बोधि के दाता को।।5।। 'धम्म दयाणं, धम्म देसयाणं, '(चारित्र)धर्म के दाता को, धर्म का उपदेश देने वाले को, धम्म नायगाणं, धम्म सारहीणं, धर्म के नायक को, धर्म के सारथी को, धम्म'वर चाउरंत चक्कवट्टीण।।6।। 'चारगति का नाश करने वाले, 'श्रेष्ठ धर्म चक्रवर्ती को।।6।। 'अप्पडिहय वर नाण देसण धराणं, 'अबाधित श्रेष्ठ(केवल) ज्ञान दर्शन को धारण करने वाले को 'वियट्ट छउमाणं।।7।। 'छद्मस्थता से रहित को।।7।। . 'जिणाणं, जावयाणं, 'राग-द्वेष को जीते हुए, जितानेवाले,

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