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को धर्म सामग्री प्राप्त होने पर भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती ।
(2) जाति भब्य - कितने जीव ऐसे भी होते है कि वे जाति से तो भव्य होते हैं। लेकिन इन्हें अव्यवहार राशि से बाहर आने का मौका ही नहीं मिलता। ऐसे जीव को जाति भव्य जीव कहते हैं। जैसे पति का योग न मिलने के कारण पुत्र को जन्म नहीं दे सकने वाली कुंवारी कन्या की तरह जाति भव्य जीवों में मोक्ष में जाने की योग्यता होने पर भी मोक्ष में जाने की सामग्री (मनुष्य-भव, सद्गुरु का योग, प्रभु वचन पर श्रद्धा आदि) का योग नहीं होने के कारण इन्हें कभी मोक्ष नहीं मिलता।
( 3 ) भव्य जीव- मोक्ष में जाने की योग्यता वाला जीव भव्य कहलाता है ।
* जैसे किसी स्त्री को पति का योग मिलने पर पुत्र की प्राप्ति होती है वैसे धर्म सामग्री के योग से भव्य जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
* जितने भी जीव मोक्ष में गये हैं, जाते हैं एवं जायेंगे वे सभी भव्य ही हैं ।
* जिसे मैं भव्य हूँ या अभव्य हूँ, ऐसी शंका हो जाए वह जीव भव्य होता है ।
* शत्रुंजय की यात्रा करने वाला जीव भी भव्य ही होता है ।
भव्य जीव की मोक्ष यात्रा
जीव इस संसार में अनादि काल से अनंत पुद्गल परावर्तन काल (अनंत उत्सर्पिणी+अवसर्पिणी) पूर्ण कर चुका हैं। जीव का संसार में भटकने का काल तीन प्रकार का हैं :
(I) अचरमावर्त काल (II) चरमावर्त काल (III) अर्ध चरमावर्त काल
(I) अक्षरमावर्त जीव के लक्षण
(1) इस काल के जीव को संसार ही पसंद आता है।
(2) मोक्ष बिल्कुल पसंद नहीं आता है।
(3) देव-गुरु- धर्म से बिल्कुल लगाव नहीं होता ।
इस काल में राग-द्वेष की तीव्रता (सहजमल) के कारण जीव सतत गाढ़ कर्मों को उपार्जित कर संसार
में भटकता है । जीव का यह संसार दु:खरुप, दुःख फलक एवं दुःख की ही परम्परा वाला होता है ।
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(II) चरमावर्त जीव के लक्षण
(1) इस जीव को संसार भी पसंद आता है ।
(2) मोक्ष भी पसंद आता है ।
( 3 ) देव-गुरु- धर्म भी पसंद आते हैं।
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