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रूपी बर्फ (करा) से राग-द्वेष रूपी वनखंड को जला दिया है। आपके ऐसे हृदय की पूजा से मुझे जीवन में संतोष गुण की प्राप्ति हो। इस भावना से मैं आपके हृदय की पूजा करता हूँ। १.नाभिः “रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विसराम।
नाभिकमलनी पूजना,करता अविचल ठाम"॥१॥ हे प्रभु! ज्ञान, दर्शन चारित्र से उज्जवल बनी, सकल सद्गुणों के निधान स्वरूप आपके नाभि कमल की पूजा से मुझे अविचल धाम अर्थात् मोक्ष सुख की प्राप्ति हो। इस भावना से मैं आपके नाभि की पूजा करता हूँ। नव अंग का महत्त्वः “उपदेशक नव तत्त्वना, तेणे नव अंग जिणंद।
__ पूजो बहुविध राग थी,कहे शुभवीर मुणिंद"॥10॥ - प्रभु ने नवतत्त्वों का उपदेश दिया। इसलिए प्रभु के नव अंग की पूजा बहुमान पूर्वक करनी चाहिए। प्रभु की पूजा से अपने अंदर नव तत्त्वों के हेयोपादेय का ज्ञान प्राप्त होता है।
पुष्प पूजा करने की विधि * सुगंधित, उत्तम, अखंड तथा ताजे फूल ही प्रभुजी को चढ़ाये। जैसे :- गुलाब, चंपा, मोगरा आदि। * नीचे गिरे हुए या पाँव तले आये हुए या पिछले दिन चढ़ाये हुए पुष्प प्रभुजी को नहीं चढ़ाये। * पुष्पों की पंखुड़ियों को नहीं तोड़े अथवा टूटी हुई पंखुड़ियाँ प्रभुजी को नहीं चढ़ाये। * हाथ से गुंथी हुई पुष्पों की माला चढ़ाये (सुई-धागे से गुंथी हुई माला नहीं)। पुष्प पूजा कादोहाः “सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप।
सुमजंतु भव्य ज परे, करिए समकित छाप॥" . . “ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय,
श्रीमते जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा।" । अर्थ : जिससे संताप नाश हो जाते है ऐसे प्रभु की मैं सुगंधित और अखंड पुष्पों द्वारा पूजा करता हूँ। जिस प्रकार पुष्प पूजा करने से उन पुष्पों को भव्यत्व का श्रेय मिलता है। उसी प्रकार मुझे भी भव्यत्व का श्रेय प्राप्त हो। प्र.: पुष्प तो वनस्पतिकाय काजीव है।उसमें हमारे जैसा ही जीव है-आत्मा है। पौधे पर से उसे चुनने पर पुष्प के जीव को अवश्य किलामणा (पीड़ा) होती है। तो फिर पूजा की प्रवृत्ति में ऐसी हिंसामय पद्धति क्यों अपनायी गयी? अहिंसा-प्रधान शासन में ऐसी हिंसा का विधान क्यों?